प्राण-विज्ञान | PRAN VIGYAN HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Pran Vigyan Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

प्राण तत्त्व को सामान्यतया लौकिक तथा पारलौकिक दोनों क्षेत्रों में विशेष महत्व दिया गया है। इस पर जितना मनन, चिन्तन, अध्ययन और अनुसन्धान प्राचीन भारतीय मुनियों, योगियों और सन्तों ने किया था उतना कदाचित् ही अन्यत्र कहीं किया गया होगा। वास्तव में प्राण-विज्ञान और प्राणोपासना भारत की अपनी विचित्त बौद्धिक देन है। यह अत्यन्त प्राचीन विद्या है।

मानव सभ्यता तथा सूक्ष्म चिन्तन के इतिहासज्ञों द्वारा विश्व के पुस्तकालयों में वेद सबसे प्राचीनतम ग्रन्थ माना जाता है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में तो प्राण-शक्ति का विशेष उल्लेख मिलता है। प्रश्नोपनिषद्, बृहदारण्यकोपनिषद्, ऐतरेयारण्यक के प्रथम तीन अध्यायों में तथा वेदान्त दर्शन के प्रारम्भ में ही इस तत्त्व का सारगर्भित संकेत है। बृहदारण्यकोपनिषद् के कथनानुसार भी प्राण में चेतनारूपी कम्पन होने से ही उसे प्राण नाम से अभिहित किया गया है। ब्रह्म-विद्या परक अथर्ववेद में तो ११वें काण्ड के दूसरे अध्याय के अन्तर्गत २६ मन्त्रों का पूरा सूक्त ही प्राण के बड़े सुन्दर विशद व्याख्यान से ओत-प्रोत है। उक्त सूक्त के प्रथम मन्त्र के भावपूर्ण शब्दों में वह जगत् व्यापी प्राण नमस्य है, उपास्य है क्योंकि समस्त संसार उसी के आधार पर अधिष्ठित है। वह सबका शासक है, स्वामी है, प्राणी-मात्न उसी के आश्रय से जीवन धारण कर रहा है।

उसी में सर्वभूत प्रतिष्ठित हैं। ईश्वर में ही सम्पूर्ण जगत् ठहरा हुआ है, प्रतिष्ठित है। जीवनोद्गम प्राण प्रेरक वही सर्वभूतों के भी भूतेश्वर हैं। इस प्रकार भौतिक प्राण तथा प्राणाधिप्राण दोनों ही ब्रह्माण्ड में गति-मात्त्र तथा कम्पन का साधारण और असाधारण हेतु बने हुए हैं। सारा जीव जगत् प्राणों के वशीभूत है और कम्पनशील प्राण में ही स्थित है। वह सर्वव्यापी चेतन आत्मा इन प्राणों का भी प्राण है और चक्षु का भी ज्योति-प्रद चक्षु' है फिर भी वह समस्त जगदवलम्बी इन कार्यों का उपादान कारण नहीं अपितु केवल सान्निध्य मात्त्र से निमित्त कारण है। वह "सूर्य आत्मा" भगवान् सर्वव्यापकत्वेन सर्वत्र ही गति का हेतु है। प्राण ही अखिल जीवन-सार और गति का एकमात्न हेतु....

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:प्राण-विज्ञान | Pran Vigyan
Author:Yogeshvaranand Sarasvati
Total pages:200
Language: हिंदी | Hindi
Size:84 ~ MB
Download Status:Available


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