योग के मूलभूत सिद्धांत | YOG KE MOOL BHUT SIDDHANT HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Yog Ke Mool Bhut Siddhant Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

योग शब्द 'युज समाधौ' आत्मनेपदी दिवादिगणीय धातु में 'घ्ञ' प्रत्यय लगाने से निष्पन्न होता है। अतः योग शब्द का अर्थ समाधि अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध है। "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः"। हमारा चित्त सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण के उपादान कारण वाला है, इसलिए उसका स्वाभाव त्रिगुणात्मक है। अर्थात् चित्त, प्रकाश, क्रिया व स्थितिशील वाला है। चित्त की पाँच अवस्थायें हैं क्षिप्त, विक्षिप्त, मूढ़, एकाग्र और निरुद्धावस्था। चित्त की एकाग्र अवस्था से योग का प्रारम्भ होता है। चित्त में जितनी भी वृत्तियाँ अर्थात् विचार उत्पन्न होते हैं उन सबको महर्षि पतंजलि ने पाँच भागों में विभक्त किया है। प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति। इन पाँचों प्रकार की क्लिष्ट और अक्लिष्ट वृत्तियों को रोक देना ही योग है। "योगः समाधिः"। उपरोक्त पाँचों प्रकार की वृत्तियों का निरोध करने से क्लेश व कर्म के बन्धन शिथिल होते हैं और निरुद्ध अवस्था अभिमुख होती है। तथा सम्प्रज्ञात समाधि की प्राप्ति होती है।

आत्मा अपने नित्य शुद्ध, बुद्ध, मुक्त, आनन्दमय, शान्तिमय, पूर्ण सुखमय मूलस्वरूप या मूल स्वभाव में अवसिीत हो जाता है। योग की या समाधि की इस अवस्था में योगी भगवान् का यन्त्र बनकर ईश्वरीय ज्ञान, शक्ति, सामर्थ्य, ईश्वरीय प्रेम करुणा-वात्सल्य या दिव्यता से युक्त होकर दिव्यकर्म करता है तथा दिव्य सुख या ईश्वरीय सुख का अखण्ड रूप से अनुभव करता हुआ दिव्य जीवन जीता है व समष्टि में भी दिव्यता व शुभ का आधान करता है। योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्ग त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ।। हे धनञ्जय ! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्यकर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:योग के मूलभूत सिद्धांत | Yog Ke Mool Bhut Siddhant
Author:Unknown
Total pages:102
Language: हिंदी | Hindi
Size:1 ~ MB
Download Status:Available


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