Bhava Prakash Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
धर्मार्थकाममोक्षाणां मूलमुक्तं कलेवरम् । तख्य सर्वार्थसंसिद्धदै वेद्यदि निरामयम् ।।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आयुर्वेद का ज्ञान परमावश्यक है। आयुर्वेद के द्वारा आयु के लिए हिताहित द्रव्यों का ज्ञान, रोगों का निदान तथा रोगों को दूर करने का ज्ञान प्राप्त होता है। कहा भी है-
आयुर्हिताहितं व्याधेर्निदानं शमनं तथा। विद्यते यत्र विद्वद्धिः स आयुर्वेद उच्यते ।।
आयुर्वेद की उत्पत्ति
आधुनिक काल के उपलब्ध मान्य ग्रन्थों के आधार पर यदि आयुर्वेद के उत्पत्तिकाल का निर्णय किया जाय तो आयुर्वेद को अनादि अपौरुषेय कहना ही उचित होगा। चरक ने भी कहा है-
'सौऽयमायुर्वेदः शाश्वतो निर्दिश्यते, अनादित्वात्, स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वात् । ब्रह्मा ने विश्वसूजन में प्राणियों की उत्पत्ति के पूर्व हो आयुर्वेद की रचना की।
'अनुत्पाद्यचैव प्रजा आयुर्वेदमेवाऽप्रेऽसृजत्' (सुश्रुत)
सृष्टि से पूर्व आयुर्वेद की रचना का उसी प्रकार संभव है जिस प्रकार शिशु की उत्पत्ति के पूर्वस्तन्य की उत्पत्ति हो जाती है। 'बालस्योत्पत्तेः पूर्वं स्तन्योगमनमिव सृष्टेः प्रथमत आयुर्विज्ञानं स्वरतोऽपि सम्भति । (काश्यसंहिता)
आयुर्वेद का विकास
आयुर्वेदोत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्मा ने पार्थिवसृष्टि करने के साथ ही साथ प्राणियों को विविध रोगों से बचाने के लिए दक्षप्रजापति को सर्वप्रथम आयुर्वेद का उपदेश दिया। तदनन्तर दक्षप्रजापति ने अश्विनीकुमारों को आयुर्वेद का सांगोपांग ज्ञान इस रूप से कराया कि अश्विनीकुमारों ने अपने नाम पर एक संहिता का निर्माण हो कर डाला, जिसे देखकर देवराज इन्द्र भी मुग्ध हो उठे और उन्होंने स्वयं अचिनीकुमारों से आयुर्वेद का अध्ययन किया।
इन्द्र से महर्षि आत्रेय और आत्रेय से अधिवेश, मेल, जतुकर्ण, पराशर, क्षारपाणि तथा हारीत नामक ऋषियों ने आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की और उन्होंने आयुर्वेद में पारंगत होकर अपने-अपने नाम से पृथक् पृथक् विविध मन्यों की रचना भी की। उपलब्ध विभित्र संहिता ग्रन्थों में कुछ हेर-फेर के साथ प्रायः यही अवतरणक्रम निर्दिष्ट किया गया है। शल्यकर्म प्रधान ग्रन्थों में केवल सुश्रुतसंहिता तथा कायचिकित्सा के प्रन्थों में चरकसंहिता, हारीतसंहिता एवं खण्डित रूप में भेलसंहिता और बालतन्त्र का विशेष तत्व 'काश्यपसंहिता या वृद्धजीयकीय तत्व उपलब्ध हैं। वास्तव में इनमें अधिकांश मौलिक न होकर प्रतिसंस्कृत एवं उत्तरकालीन भावों से प्रभावित है। अधिवेश तन्ब अब चरक प्रतिसंस्कृत रूप में-चरकसंहिता के रूप में अधिक प्रसिद्ध है।
आचार्य चरक के पश्चात् महर्षि सुश्रुत का काल है। सुश्रुत विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने काशिराज दिवोदास, जो धन्वन्तरि के अवतार माने जाते थे, उनसे आयुर्वेद का अध्ययन कर 'सुश्रुत' नामक ग्रन्थ की रचना की। सुश्रुत ने अपने धन्य में शल्य-शालाक्य की चिकित्षस पर विशेष ध्यान दिया है। अतः सुश्रुत अन्य शल्य शालाक्य चिकित्सा के लिए अधिक प्रसिद्ध है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | भाव प्रकाश | Bhava Prakash |
Author: | Bhava Mishra |
Language: | हिंदी | Hindi |
Download Status: | Available |
- Bhava Prakash Hindi Part-1 1167 Pages [645 MB]
- Bhava Prakash Hindi Part-2 1120 Pages [604 MB]
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