Chinachar Tantram Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
संस्कृत वाङ्मय दो भागों में विभक्त है- निगम और आगम। उसके अनुसार भारतीय संस्कृति निगमागम मूलक है। निगम-आगम क्या हैं, इस विषय में कुलूकभट्ट के अनुवार इश्वरप्रणीत धर्मग्रन्थ दो प्रकार के हैं- वैदिक और तान्त्रिक। द्विविधा हि ईश्वर प्रणीता मन्त्राग्रन्था वैदिका तान्त्रिकाश्च।
देवी भागवत पुराण के अनुसार 'निगम्यते ज्ञायतेऽनेन इति निगमः' - अर्थात् जिसके द्वारा किसी भी विषय अथवा तत्त्व को जाना जाता है, उसे निगम कहा जाता है।
वैसे भी 'नि' उपसर्गपूर्वक 'गम्' धातु में तत्रभवः से 'अण्' प्रत्यय से निगम शब्द बना है। 'गम्' धातु जाने, पहुंचने तथा ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त होती है तथा 'नि' उपसर्ग का अर्थ निश्चित रूप से है, अतः निगम का अर्थ हुआ कि निश्चित रूप से किसी तथ्य, तत्त्व अथवा विषय तक पहुंच सके, उसे जान सके, उसे निगम कहा जायेगा। इस दृष्टि से वैदिक साहित्य ही निगम की संज्ञा का अधिकारी है, क्योंकि वैदिक साहित्य मानव का उचित मार्गदर्शन करता है।
आगम शब्द की व्याख्या करते हुए वाचस्पति मिश्र ने कहा है कि 'आगच्छन्ति बुद्धिमारोहन्ति यस्माद् अभ्युदयनिःश्रेयसोपायाः स आगमः' अर्थात् जिससे कल्याणकारी उपाय बुद्धि में आते हैं, आरोहण करते हैं, वह आगम है। ऐसे भी यदि हम आगम शब्द की व्युत्पत्ति करें तो 'आ' उपसर्ग पूर्वक 'गम्' धातु में 'अच्' प्रत्यय से आगम शब्द बनता है। आ उपसर्ग आ = समन्तात् के अनुसार समन्त अर्थ में आता है तथा इसका अर्थ विशिष्ट क्रम भी है, समन्त का अर्थ होगा सम्यक् प्रकार से अन्त तक, जो पूर्ण की पराकाष्ठा है तथा गम् धातु तो जाने, पहुंचने और जानने के अर्थ वाली है ही, अतः आगम शब्द का अर्थ हुआ जिसके द्वारा सम्यक् प्रकार से आदि से अन्त तक विशिष्ट क्रम से तत्त्व विषय अथवा तथ्य तक पहुंचा जा सके, उसे आगम कहा जायेगा। इस व्याख्या के अनुसार आगम-निगम से भी महत्त्वपूर्ण साहित्य माना जा सकता है। इसीलिये जिन धर्मनिष्ठ विद्वानों की तन्त्रमार्ग पर असीम श्रद्धा है, उन्होंने तन्त्र साहित्य को पञ्चम वेद कहा है। बंगाल प्रदेश के शाक्त विद्वान् तो तन्त्रग्रन्थों को वेदों से भी महत्त्वपूर्ण मानते हैं। प्राचीनकाल से ही निःश्रेयस साधना की दो धारायें भारत में चली आ रही हैं। परम्परानुसार आगमशास्त्र (तन्त्र साहित्य) के प्रवर्तक आदिनाथ श्री शंकराचार्य माने गये हैं, क्योंकि इन्होंने ही इसका सामाजिक प्रवर्तन किया है, परन्तु तन्त्र साहित्य.....
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | चीनाचारतन्त्रम् | Chinachar Tantram |
Author: | Chaukhamba Prakashan |
Total pages: | 86 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 37 ~ MB |
Download Status: | Available |
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