Maya Tantram Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
तन्त्र साहित्य कोई सामान्य एवं सीमित साहित्य नहीं है। इसमें लाखों ग्रन्थ आते हैं। असंख्य ग्रन्थ तो अभी संग्रहालयों एवं मठों में पाण्डुलिपि रूप में स्थित हैं तथा अनेकों ग्रन्थ यवन शासकों की क्रोधाग्नि में सदा-सदा के लिये विलुप्त हो गये। इसका प्रमाण नालन्दा विश्वविद्यालय में ग्रन्थों की भस्म दे रही है। जो भी हो, जो भी साहित्य उपलब्ध है, वह कम तथा कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। यह तन्त्र साहित्य केवल हिन्दू साहित्य में ही नहीं है, जैन साहित्य में, नमस्कार मन्त्र कल्प, प्रतिष्ठा कल्प, चक्रेश्वरी कल्प, ज्वालामालिनी कल्प, पद्मावती कल्प, सूरिमन्त्रकल्प, वाग्वादिनी कल्प, श्रीविद्या कल्प, वर्धमान विद्या कल्प, रोगापहारिणी कल्प आदि अनेक तन्त्र ग्रन्थ विद्यमान हैं।
बौद्ध साहित्य में, वसुधारा कल्प, घण्टाकर्ण कल्प, तारा कल्प आदि अनेक ग्रन्थ हैं। वैदिक साहित्य में तो इनका एक अलग भण्डार ही है। अतः तन्त्रशास्त्र केवल हिन्दुओं का ही साहित्य नहीं है, यह किसी न किसी रूप में सब धर्मों में प्रचलित है।
जब हम तन्त्र शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करते हैं तो तनु = विस्तार अर्थ वाली धातु में 'ष्ट्रन्' प्रत्यय से तन्त्र शब्द बना है, जिसका अर्थ है 'तन्यते विस्तार्यतेऽनेन इति तन्त्रम्' अर्थात् जिसके द्वारा ज्ञान का विस्तार किया जाता है, वह तन्त्र है तथा यही तन्त्र नै रक्षात्मक धातु से भी बन सकता है। तब इसका अर्थ होगा 'त्रायते साधकान् इति तन्त्रम्' अर्थात् जो साधकों की रक्षा करता है, वह तन्त्र है।
संस्कृत वाङ्मय दो भागों में विभक्त है- निगम और आगम। उसके अनुसार भारतीय संस्कृति निगमागम मूलक है। निगम-आगम क्या हैं, इस विषय में कुलूकभट्ट के अनुवाद इश्वरप्रणीत धर्मग्रन्थ दो प्रकार के हैं-वैदिक और तान्त्रिक। द्विविधा हि ईश्वर प्रणीता मन्त्राग्रन्था वैदिका तान्त्रिकाश्च।
देवी भागवत पुराण के अनुसार 'निगम्यते ज्ञायतेऽनेन इति निगमः'- अर्थात् जिसके द्वारा किसी भी विषय अथवा तत्त्व को जाना जाता है, उसे निगम कहा जाता है।
वैसे भी 'नि' उपसर्गपूर्वक 'गम्' धातु में तत्रभवः से 'अण्' प्रत्यय से निगम शब्द बना है। 'गम्' धातु जाने, पहुंचने तथा ज्ञान के अर्थ में प्रयुक्त होती है तथा 'नि' उपसर्ग का अर्थ निश्चित रूप से है, अतः निगम का अर्थ हुआ कि......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मायातन्त्रम् | Maya Tantram |
Author: | Dr. Rupesh Kumar Chauhan |
Total pages: | 128 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 45 ~ MB |
Download Status: | Available |
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