Mohini Vidya Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
२ : मोहिनी विद्या
जीवन का अनुभव समय एकाएक इकलौते पुत्र का देहान्त होनेसे जीवन निः सार लगना, धंधे व्यापार में हानी पहुँचकर पागल-सी दशा हो जाना, अचानक कोई बीमारी पैदा से चिन्तित हो जाना और मृत्युभय ये नित्य अनुभव की बातें रहीं । भगवान के पूजा-पाठों, यात्राओं, तथा दार्शनिक ग्रंथों के पठन से भी सच्ची मनःशांति का प्राप्त होना कितना कठिन है इसका सभी ने अनुभव किया ही होगा। होनहार होकर ही चुकती है। महानतम ईश्वर भक्त भी नसीब के चक्कर से नहीं बच पाता । साध्वी मीरावाई को जननिंदा का शिकार बनना पडा, सन्त तुकाराम सारा जीवन दारिद्रयावस्था में वित गया, संत ज्ञानेश्वर को अपमानों का जहर पीना पडा, गुरु गोविंद और अर्जुनसिंग का मुगल सम्राट ने वध किया । नियति का एक अलग ही कानून रहता है । अतः हर मनुष्य के सामने हमेशा यही एक समस्या रहती है कि क्या इस भीषण तथा हर क्षण व्यस्त देनेवाले संसाररूपी सागर को सफलता से पार करने का भी कोई उपाय हो सकता है ?
मनुष्य जीवन सुखी और समृद्ध बनाने के बीसों ज्ञात और अज्ञात मार्ग होते हैं । फिर एक बार मैं सूचित करना चाहता हूँ कि इस ग्रंथ की रचना केवल ऐसे व्यक्तियों के लिए की गई है कि जो रस संसार को सत्य मानते है । जिस प्रकार सपने में लगी प्यास बुझाने के लिए सपने में मिला पानी का घूंट काफी हो जाता है, उसी प्रकार इस ग्रंथ में बताए गए व्यावहारिक मार्ग एवम् साधनाएँ व्यवहार में उपयुक्त सिद्ध होंगी इसमें कोई भी शक नहीं । सिरदर्द पर अवेदन की टिकिया काम आती है, उद्जन और प्राणवाय विशिष्ट तरीके से मिला देने पर बन जाता है; जिस प्रकार व्यवहार की बातें हैं उसी प्रकार इस ग्रंथ में कथित साधनाओं से विशिष्ट परिणाम सिद्ध हो जाते हैं, इस बात का कभी विस्मरण न हो । पारमाथिक या आध्यत्मिक दृष्टि से देखा जाय तो केवल एक परमात्मा को छोड़कर कुछ भी अस्तित्व में नहीं है । अर्थात्, “ सर्वं खलु इदं ब्रह्म " यह भाव केवल ज्ञानियों में पाया जाता है । फिर पारमार्थिक दृष्टि को जरा दूर रखकर पूर्ण व्यावहारिक भूमिका को स्वीकार कर इस ग्रंथ का अध्ययन किया जाय
"मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः " इस सूत्र के अनुसार मन ही लौकिक सुख-दुःखों की जड़ है । अतः हमारे मन को सुखाभिमुख प्रवृत्तिवादी कैसे किया जाय इसके संबंध में इस ग्रंथ में चर्चा की गई है । दिनरात की चिता, जटिल समस्याएँ, भविष्यकालिन संकट, दारिद्रय आदि आदि बातों के कारण मनुष्य प्राणी का मन बिलकुल दुर्वल और पंगु बन चुका है । ऐसी विषम परिस्थितियों में मन प्रसन्न रखकर उसे बलवान कैसे बनाया जाय, लोगों पर प्रभाव डालकर उन्हें वश कैसे किया जाय, संकट के समय मानसिक सन्तुलन कैसे साधा जाय.......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मोहिनी विद्या | Mohini Vidya |
Author: | A.L. Bhagavat |
Total pages: | 236 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 99 ~ MB |
Download Status: | Available |
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