Muhurta Chintamani Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
सिद्धान्तसंहिताहोरारूपं स्कन्धत्रयात्मकम् । वेदस्य निर्मल चक्षुज्योंतिःशास्त्रमकल्मषम् ॥१॥ अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम् । प्रत्यक्षं ज्यौतिषं शास्त्र चन्द्राकों यत्र साक्षिणौ ॥२॥ विनैतदखिलं श्रौतस्मार्त्तकर्म न सिद्धयति । तस्माज्ञ्चगद्धितायेदं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा ॥३॥
बेदके छः अंग हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष । इनमेसे सर्वोत्तम अंग नेत्रसंशक निर्मल निष्कलंक ज्योतिय ही है, जिसको प्राचीन ऋषियोंने सिद्धान्त (गणित अन्य) संहिता (मुहूर्त आदि) होरा जातक, ताजिक आदि फलादेश (इन तीन स्कन्धोंमें प्रगट किया। इसके विना समस्त श्रौत स्मार्त (वैदिक एवं चर्मशास्त्रोक्त) कर्म सिद्ध नहीं हो सकते, इसलिये संसारके उपकारार्थ ब्रह्माजीने इसे वेदनेत्र करके कहा, इसी हेतु (यज्ञादि वैचिककर्म करनेवाले) द्विजों (बाह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों) को इसे मत्लसे पढनेकी आजा है। अन्य शास्त्रोंमें विवाद बहुत है, प्रत्यक्ष फलोदय ऐसा नहीं है जैसा प्रत्यक्ष चमत्कृत ज्योतिष है, जिसके साक्षी सूर्य, चन्द्रमा, उदयास्त, श्रृंगोन्नत्यादि हैं। शिक्षामेभी लिखा है कि-"शिक्षा प्राणं तु वेदस्य मुलं व्याकरणं स्मृतम्। ज्योतिषामयनं वक्षुनिरुस्त ओत्रमुच्यते ।। छन्दः पादौ तु वेदस्य हस्तौ कल्पान् प्रचक्षते ।। " इति। समस्त अंग प्रत्यंग परिपूर्ण होते हुए भी जैसे नेत्रोंके बिना समस्त अन्धकार ज्ञात होता है वैसे ही इनके विना समस्त साधन निरर्थक है। वसिष्ठसिद्धान्तका भी वाक्य है कि "वेदस्य चक्षुः किल शास्त्रमेतत् प्रधानतां मेषु ततोऽयंजाताः । अंगेर्युतान्यैः परिपूर्णमूत्तिश्चक्षुविहीनः पुरुषो न किचित् ।।" इत्यादि बहुत प्रमाणवाक्य है पर वर्तमान समयमें बहुधा वर्तमानसामयिक महाशय कहते हैं कि, ज्योतिष कुछ वस्तु नहीं है, भूतकालमें बाह्मण ही विद्यावान् रहे।
सुज होनेसे उन्होंने पह पारिणामिक दूरदर्शी विबार किया कि यदि हमारी सन्तान विद्या पराक्रमादिकोंसे अल्पसार हो जायगी तो क्या वृत्ति आजीवन करेगी? इसलिये ज्योतिशास्त्र बनाया कि, जिससे सबको प्रतीत हो एवं बाह्मणोंको ही मानें इत्यादि बहुतसे बाद प्रतिवाद करते हैं। तथापि जानना नाहिये कि, यह शास्त्र किसने आरम्भमें बनाया और कब बना? यह तो सर्वसाधारण जानते ही है कि, जो खगोल भूमिमान (पैमायस) सूर्य चन्द्रग्रहण आदि गणित एवं दिन रात्रि पक्ष, मास वर्ष आदि काल सब ज्योतिषहीसे तो प्रकट हैं, रहा फलादेश पक्ष, सो यह प्राचीन ग्रन्थ- कर्ता बचायोंकी बुद्धिमत्ता है. कि, सब जीवमात्र अपने अपने कर्मानुसार फल पाते हैं, यह तो प्रगट ही है परन्तु वह कर्म एवम् उसका परिणाम अदृश्य है, इसे दृश्य करनेके लिये उन महात्माओंने ऐसे २ हिसाब (गणित) नियत किये कि, जिनकी संज्ञायें सूर्यादि ग्रह बौर.....
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मुहूर्त चिंतामणि | Muhurta Chintamani |
Author: | Daivagya Shri Ramacharya |
Total pages: | 172 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 87 ~ MB |
Download Status: | Available |
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