Rasa Ratna Samucchaya Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
संप्रति संसारमें विद्या और कला संबन्धी अनेक आविष्कारोंकी धूम मच रही है। पाश्चात्य तथा पौरस्त्य (चीन, जापान आदि) सभी स्वतन्त्र राष्ट्र अपने अपने ज्ञान और धनका सदुपयोग इस विषयमें अश्रन्त परिश्रम और आत्मोत्सर्गके साथ कर रहे हैं। परन्तु विद्या और कलाओंका आद्य प्रवर्तक, सारे संसारका आदिगुरु भारतवर्ष परतन्त्र होने और राजकीय प्रोत्साहन न मिळनेके कारण अपने प्राचीन गौरवको खोकर पश्चात्पद होरा है यह बात प्रत्येक सहृदय भारतीयके लिये मर्माविष्ट शल्यके समान है। यद्यपि राष्ट्रीय विद्या और कलाकौशउकी उन्नतिके लिय राजाश्रय गुख्य है तथापि जब आजतकके अनुभवसे यह भली भांति सिद्ध हो चुका है कि विदेशी शासकोंसे उसकी आशा करना व्यर्थ है तब केवळ स्वावलम्बनही भारतके उत्थानके लिये अमोच उपाय है।
विचार करनेसे प्रतीत होता है कि हमारे प्राचीन भव्य भारतके ध्वंसाव शेष नव्य भारतमें जिस विविध ज्ञान-कलाकौशलके जीर्णोद्धार पूर्वक विका- सकी अत्यधिक आवश्यकता है उसमेंसे आयुर्वेद एक परमावश्यक विषय है। हमारे पाचीन आयुर्वेदकी उत्तमता के विषयमें किसीको कोई संदेह हो ही नहीं सकता, क्योंकि पाश्चात्य विद्वानोंने भी समय समय पर उसकी शतमुखसे प्रशंसा की है। हमें इसी पर फूड कर कुप्पा हो जाना भी उचित नहीं क्योंकि वर्तमान समयमें डाक्टरीके समान आयुर्वेद विषयक विकास करते हुए उसे सर्वाधिक सर्वोपयोगी बनानेकी अत्यधिक आवश्यकता है। यह भी निर्विवाद ही है कि हिन्दी जनताको जब तक आयुर्वेदकी उत्तमताका परिचय न दिलाया जायगा तब तक वह उसके प्रति अपनी सहानुभूति अथवा कर्तव्य प्रकट ही नहीं कर सकती। ऐसा होते हुए भी महान् शोकके साथ कहना पड़ता है कि इस समय आयुर्वेदोद्धारके संबन्धमें जैसा निस्सार प्रयत्न हो रहा है उससे उसकी उपयोगिताका ठेश भी लोगोंके ध्यानमें नहीं आ सकता, अतः सुचारुरूपसे सुटर प्रयत्न होनेकी अति शीघ्र आवश्यकता है। सर्वे साधारणको स्वशरीररक्षोपयोगी वैद्यक संबन्धी ज्ञान प्राप्त करनेके साधन और खियोंको अपने गर्भ व बालकका पालन-पोषण एवं गार्हस्थ्य जीवनको उत्तम दशामें लानेके लिय आवश्यक ज्ञान प्राप्त करनेकी सुविधाओंका प्रवन्ध सबसे प्रथम होना चाहिये । अथवा वैद्यकसंस्था-आयुर्वेदिक पाठशालाभोंको स्थापित कर उनमें विद्यार्थियोंको अनुभवके साथ पूर्ण शिक्षा देनेका नियम- बद्ध प्रबन्ध हो, आयुर्वेदीय सब प्रकारकी औषधोंका देशमें सर्वत्र प्रचुर प्रचार होकर, राजा रंक सबको......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | रस रत्न समुच्चय | Rasa Ratna Samucchaya |
Author: | Shankar Lal Hari |
Total pages: | 958 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 472 ~ MB |
Download Status: | Available |
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