Yoga Vidya Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
योग के मार्ग में कुछ बाधाएँ हैं जिन्हें हर हाल में आपको अपने यौगिक जीवन के प्रारम्भ में ही दूर कर लेना चाहिए। यदि आपने इन बाधाओं से स्वयं की सही समय पर रक्षा नहीं की तो आपकी आशाएँ और महत्त्वाकांक्षाएँ छिन्न-भिन्न हो सकती हैं और अन्ततः पतन निश्चित है। कामुकता, लोभ, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, भय, आलस्य, अवसाद, पूर्वाग्रह, असहिष्णुता, बुरी संगत, अहंकार, नाम और यश की चाह, कौतूहल, हवाई किले बनाना और ढोंग प्रमुख बाधाएँ हैं। आपको सदा आत्म-निरीक्षण करना चाहिए तथा अपने मन पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। आपको उचित उपायों के द्वारा इन अवरोधों को जड़ समेत मिटाना चाहिए।
योग के साधक के पास ज्यादा धन नहीं होना चाहिए क्योंकि ये उसे सांसारिक प्रलोभनों की तरफ खींचेगा। वह शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए थोड़ा पैसा रख सकता है। आत्मनिर्भरता एक साधक के लिए बहुत जरूरी है, तभी वह निश्चिन्त होकर अपनी साधना जारी रख सकता है।
अगर आप छोटी-छोटी बातों का भी जल्दी बुरा मान जाते हैं तो जान लीजिए कि योग और ध्यान में आप प्रगति नहीं कर सकते। आपको स्नेही और मिलनसार स्वभाव विकसित करना चाहिए, परिस्थिति के अनुकूल स्वयं को ढालने की क्षमता उत्पन्न करनी चाहिए। कुछ साधक अपनी गलतियाँ या अवगुण बताए जाने पर एकदम बुरा मान जाते हैं। दोष दिखाने वाले व्यक्ति से वे क्रुद्ध होकर झगड़ने लगते हैं। उन्हें लगता है कि वह व्यक्ति नफरत या जलन के कारण मनगढंत दोष लगा रहा है। यह गलत बात है। दूसरे लोग आपके दोषों को आसानी से पकड़ सकते हैं। अगर आप आत्म-निरीक्षण नहीं करते और मन सदा बाहर की ओर दौड़ता है तो फिर आप अपनी कमियों का कैसे पता लगा सकते हैं? आपका मिथ्याभिमान आपकी विवेक शक्ति को धुंधला देता है। इसलिए अगर आप योग और अध्यात्म में आगे बढ़ना चाहते हैं तो दूसरे जब आपके दोष बताएँ, तो उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए। आपकी कोशिश होनी चाहिए कि आप उन गलतियों को दूर करें और गलती दिखाने वाले व्यक्ति के सदा आभारी रहें।
हठधर्मी स्वभाव से छुटकारा पाना बड़ा मुश्किल होता है। ऐसा स्वभाव केवल अज्ञानता की देन है। प्रत्येक मनुष्य का व्यक्तित्व बहुत पहले से ढला होता है। यह व्यक्तित्व समय के साथ और भी कठोर व अनम्य होता जाता है। इस व्यक्तित्व को लचीला बनाना बहुत कठिन है। आप दूसरों को दबाकर रखना चाहते हैं, दूसरों की राय सुनना नहीं चाहते, चाहे वह कितनी ही तर्कसंगत, उचित और समर्थनीय......
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | योग विद्या | Yoga Vidya |
Author: | Bihar School Of Yoga |
Total pages: | 56 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 3 ~ MB |
Download Status: | Available |
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