Panchstavi Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
काश्मीर के शैव दर्शन के आधार से भक्ति के आवेश में शाम्भवी अवस्था पर पहुँचे हुये ब्रह्मनिष्ठ, योगी, छन्द व्याकरण अलङ्कारशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् किसी काश्मीरी पण्डित ने इस "पञ्चस्तवी" की रचना की है, पञ्चस्तवीकार ने इस सारगर्भित स्तुति में कहीं अपने नाम का संकेत नहीं दिया है, और अपने को माता की स्तुति का अनधिकारी जानकर कहा है: वाचस्पतिः प्रभृतयोपि जडी भवन्ति, तस्मात्-निसर्ग-जडिमा कतमोह-अत्र" हे माता। जहाँ बृहस्पति आदि आप का वर्णन करने में मूक हो जाते हैं वहाँ मेरी गिनती किस में है, यदि में यह स्तुति करता हूँ, यह मैं स्वयं नहीं करता हूँ आप के भक्ति का आवेश करवा रहा है, पञ्चस्तयोकार को यह पूर्ण विश्वास था यह स्तुति मैं नहीं करता हूँ अपितु मुझे निमित बनाकर माता स्वयं कर रही है, यहीं कारण है पञ्चस्तवी-कार ने इस स्तुति में अपने नाम का संकेत नहीं दिया है, परन्तु पञ्चस्तवी के स्वाध्याय से यह बात निश्चित हो जाती है पञ्चस्तवीकार काश्मीरी ब्राह्मण है और शारदा माता स्वयं ही इस की रचना करने वाली है, यही कारण है इस पञ्चस्तवी का नाम सुनते ही विशेषतया काश्मीरी पण्डित की आध्यात्मिक तार हिलने लगती है, पञ्चस्तवी का श्लोक पढ़ते समय अथवा सुनते समय अर्थ का ज्ञान हो या न हो प्रायः हर काश्मीरी पण्डित की वाणी गदगद् हो जाती है, शरीर पुलकित हो जाता है आँखों में आँसुओं की धारायें बहने लगती हैं, और भक्ति के आवेश में झूमने लगता है।
बचपन से ही मुझे गुरुमहाराज की प्रेरणा से इस स्तुति के अर्थ तथा टीका लिखने को प्रबल इच्छा थी, यह गुरुमहाराज की प्रेरणा का ही प्रभाव है, कि मैं ने एक अल्पज्ञ होते हुये भी इस सारगर्भित स्तुति पर यह साधारण सा अर्थ लिखने का प्रयत्न किया है, पञ्चस्तवीकार के ही शब्दों में "सावद्य निर्-अवयं-अस्तु यदि वा कि वानया चिन्तया" यह मेरा प्रयत्न दोष रहित है या दोष सहित "मैं ने यह अर्थ विद्वानों के लिये नहीं बल्कि माता के उन भक्तों के लिये जिन को पञ्चस्तवी के अर्थ का बिल्कुल ज्ञान नहीं है, लिखा है, यदि ऐसे माता के भक्तों को मेरे इस प्रयत्न से पञ्चस्तवी काश्मीर के शैव दर्शन के आधार से भक्ति के आवेश में शाम्भवी अवस्था पर पहुँचे हुये ब्रह्मनिष्ठ, योगी, छन्द व्याकरण अलङ्कारशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् किसी काश्मीरी पण्डित ने इस "पञ्चस्तवी" की रचना की है, पञ्चस्तवीकार ने इस सारगर्भित स्तुति में कहीं अपने नाम का संकेत नहीं दिया है, और अपने को माता की स्तुति का अनधिकारी जानकर कहा है: वाचस्पतिः प्रभृतयोपि जडी भवन्ति, तस्मात्-निसर्ग-जडिमा कतमोह-अत्र" हे माता। जहाँ बृहस्पति आदि आप का वर्णन करने में मूक हो जाते हैं वहाँ मेरी गिनती किस में है, यदि में यह स्तुति करता हूँ, यह मैं स्वयं नहीं करता हूँ आप के भक्ति का आवेश करवा रहा है, पञ्चस्तयोकार को यह पूर्ण विश्वास था यह स्तुति मैं नहीं करता हूँ अपितु मुझे निमित बनाकर माता स्वयं कर रही है, यहीं कारण है पञ्चस्तवी-कार ने इस स्तुति में अपने नाम का संकेत नहीं दिया है, परन्तु पञ्चस्तवी के स्वाध्याय से यह बात निश्चित हो जाती है पञ्चस्तवीकार काश्मीरी ब्राह्मण है और शारदा माता स्वयं ही इस की रचना करने वाली है, यही कारण है इस पञ्चस्तवी का नाम सुनते ही विशेषतया काश्मीरी पण्डित की आध्यात्मिक तार हिलने लगती है, पञ्चस्तवी का श्लोक पढ़ते समय अथवा सुनते समय अर्थ का ज्ञान हो या न हो प्रायः हर काश्मीरी पण्डित की वाणी गदगद् हो जाती है, शरीर पुलकित हो जाता है आँखों में आँसुओं की धारायें बहने लगती हैं, और भक्ति के आवेश में झूमने लगता है।
बचपन से ही मुझे गुरुमहाराज की प्रेरणा से इस स्तुति के अर्थ तथा टीका लिखने को प्रबल इच्छा थी, यह गुरुमहाराज की प्रेरणा का ही प्रभाव है, कि मैं ने एक अल्पज्ञ होते हुये भी इस सारगर्भित स्तुति पर यह साधारण सा अर्थ लिखने का प्रयत्न किया है, पञ्चस्तवीकार के ही शब्दों में "सावद्य निर्-अवयं-अस्तु यदि वा कि वानया चिन्तया" यह मेरा प्रयत्न दोष रहित है या दोष सहित "मैं ने यह अर्थ विद्वानों के लिये नहीं बल्कि माता के उन भक्तों के लिये जिन को पञ्चस्तवी के अर्थ का बिल्कुल ज्ञान नहीं है, लिखा है, यदि ऐसे माता के भक्तों को मेरे इस प्रयत्न से पञ्चस्तवी के.....
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | पञ्चस्तवी | Panchstavi |
Author: | Prem Nath Shastri |
Total pages: | 145 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 24 ~ MB |
Download Status: | Available |
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