षट्चक्र निरूपणम् | SHAT CHAKRA NIRUPANAM HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Shat Chakra Nirupanam

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

वैष्णव पांचराण आगम की सात्वतसंहिता (२।५८) में चार ही चक्रों का उल्लेख है। वहाँ उसके भाष्यकार ने आधार, नाभि, हृदय और कण्ठ नामक चार स्थानों में स्थित चक्रों की चर्चा की है। बौद्धों के बसन्ततिलक बादि ग्रन्थों में भी चार ही चक्र. वर्णित हैं। नाभि, हृदय, कण्ठ और मूर्धा में इनका स्थान बतलाया गया है और इनको क्रमशः निर्माण, धर्म, संभोग बौर महासुख चक्र की संज्ञा दी गई है। बौद्धों के ही कालचक्र तन्त्र में इनकी संख्या छः है। ऊपर के चार चक्रों के अतिरिक्त गुह्मचक्र और उष्णीषचक्क को मिला- कर इन छः चक्रों की विशद व्याख्या कालचक्रतन्त्र की विमलप्रभा नामक प्रसिद्ध टीका में मिलती है। विमलप्रभा (पृ० १६९) में १८ चक्रों का भी उल्लेख है। योगिनीहृदय की दीपिका टीका (पृ० ३४-३७) में स्वच्छन्द- संग्रह के प्रमाण से ३२ चक्रों का उल्लेख मिलता है। सुपुम्ना नाड़ी के नीचे बौर ऊपर रक्त और श्वेत दो सहस्रदल कमल विद्यमान है बौर इनके बीच में अन्य तीस पंकज हैं। दीपिकाकार ने यहाँ केवल नौ चक्रों का वर्णन किया है। योगिनीहृदय (३।३०) में नौ चक्रों के साथ छः चक्रों का भी उल्लेख मिलता है।

यद्यपि नेषतन्त्र (७।२८-२९) में भी छः चक्र वर्णित है, किन्तु उनकी प्रतिपादन-पद्धति भिन्न है। इस प्रकार चक्रों की संख्या और स्वरूप के विषय में भारतीय योगशास्त्र एवं तन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों में विविधता के दर्शन होने पर भी आजकल 'श्रीतत्वचिन्तामणि' के पट्चक्रनिरूपण में, सौन्दर्यलहरी और उसकी लक्ष्मीधरा टीका में मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूर, अनाहत, विशुद्धि और बाज्ञा नामक छः चक्रों को ही मान्यता मिली है। कालचक्र- तन्त्र और उसकी टीका में, योगिनीहृदय और उसकी व्याख्या में तथा नेत्र- तन्त्र में भी चक्रों की इस संख्या को यद्यपि समर्थन मिला है, तो भी इनके स्वरूप, लक्षण आदि के विषय में पर्याप्त मतभेद है। इतना सब होते हुए भी आजकल श्रीपूर्णानन्द परमहंस द्वारा षट्चक्रनिरूपण में प्रदक्षित इनका क्रम और स्वरूप ही प्रायः सर्वत्र मान्य है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:षट्चक्र निरूपणम् | Shat Chakra Nirupanam
Author:Purnanand Yati
Total pages:180
Language: हिंदी | Hindi
Size:31 ~ MB
Download Status:Available


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