Durga Tantram Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
इस परिवर्तनशील जगत् में अखिल ब्रह्माण्डनायिका पराम्बा जगदम्बा द्वारा ही समस्त ब्रह्माण्ड का नियन्त्रण, उत्पत्ति, पालन एवं अन्त में संहार भी सुनिश्चित है। ये ही उत्पत्ति काल में सृष्टिरूपा, पालन काल में स्थितिस्वरूपा तथा कल्पान्त में संहारकारिणी हैं। कहा भी है-
'त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत्सृज्यते जगत् ।
त्वयैतत्पाल्यते देवि ! त्वमत्स्यन्ते च सर्वदा ।
विसृष्टौ सृष्टिरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने ।॥
तथा संहृतिरूपान्ते जगतोऽस्य जगन्मये ।'
- ब्रह्माण्ड पुराण
'जिस तरह मृत्तिका (मिट्टी) के अभाव में घट निर्माण करने में कुम्भकार असमर्थ है और सुवर्ण के बिना स्वर्णकार आभूषण का निर्माण नहीं कर सकता, उसी तरह शक्ति के बिना सृष्टि करना भी मेरे लिए असम्भव है' ऐसा पराशक्ति के सम्बन्ध में ब्रह्मा ने कहा है। यथा-
'मृदा विना कुलालश्च घटं कर्तुं तथाऽक्षमः ।
स्वर्णं विना स्वर्णकारः कुण्डलं कर्तुमक्षमः ।
शक्त्या विना तथाऽहं च स्वसृष्टि कर्तुमक्षमः ।॥'
'जैसे, प्रशस्त बुद्धिवाले व्यक्ति भी शक्ति के विना विश्व की रक्षा नहीं कर सकते अर्थात् शक्तिशाली व्यक्ति ही संसार की रक्षा करने में समर्थ हो सकते हैं, वैसे ही मैं भी शक्ति-सम्पन्न होकर ही इस विश्व की रक्षा करणे में समर्थ हो सकता है' ऐसा भगवान् विष्णु का कथन है। जैसे-
'शक्ति विना बुद्धिमन्तो न जगद्रक्षितुं क्षमाः ।
क्षमाः शक्त्यालयस्तद्वदह शक्तियुतः क्षमः ।।'
भगवान् शङ्कर कहते हैं- हे महेशानि ! शक्ति के बिना मैं शव के समान हूँ, परन्तु शक्तियुक्त हो जाने पर मैं सभी कामनाओ को पूरा करनेवाला तथा सब कुछ करने में पूर्ण समर्थ हो जाता हूँ। कहा भी है-
'शक्ति विना महेशानि सदाऽह स्यां शवोऽथवा ।
शक्तियुक्तो यदा देवि ! शिवोऽहं सर्वकामदः ॥'
शक्ति और शक्तिमान् में भेद नहीं है किन्तु वे दोनों एक ही हैं। शक्ति सहित पुरुष शक्तिमान् कहलाता है। जैसे- 'शिव' में इकार शक्ति स्वरूप है, उस इकार को निकाल दें तो 'शिव' शब्द 'शव' बन जाता है। प्रलय काल के समय भगवान् समस्त संसार को समेटकर उदरस्थ कर लेते हैं। कालान्तर में सृजन काल के समय संकल्प-शक्ति द्वारा भगवान् या भगवती एक हो बहुत बनकर सृष्टि वा पुनः सृजन करते हैं- 'एकोऽहं बहु स्याम्' ।
यह वही शक्ति पराम्बा जगदम्बा दुर्गा हैं, जो 'दुर्गा दुर्गतिनाशिनी'- दुर्गति का नाश करनेवाली पराम्बा दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु एवं भगवान् शङ्कर की महाशक्ति हैं। उन्हीं का सर्वमङ्गल-माङ्गल्य रूप भगवती दुर्गा का स्वरूप है । जिसका ध्यान, स्तोत्र-पाठ, जप और मनन-चिन्तन करते हुए साधक अपनो सभी कामनाओं को सद्यः पूर्ण करता है।
'कलो चण्डी-विनायको' के अनुसार कोलयुग में भगवती चण्डिका- दुर्गा की उपासना-आराधना सद्यः सिद्धिकरी बतायी गयी है। दुर्गा की उपासना के लिए प्रस्तुत पुस्तक 'दुर्गातन्त्रम्' बहुत ही उपयोगी ए६ महत्त्वपूर्ण है।
इसमें - दुर्गा-ध्यान, यन्त्रोद्धार, मन्त्रोद्धार एवं अष्टाक्षरी दुर्गा मन्त्र के साथ दुर्गा-पूजाविधि, दुर्गा-मानस-पूजा आदि विविध देवी-देवताओं के साघन मन्त्र पर्यन्त अनेक विषय हिन्दी टीका के सहित दिये गये हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | दुर्गा तन्त्रम् | Durga Tantram |
Author: | Acharya Pt. Shivdatta Mishra Shastri |
Total pages: | 132 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 78 ~ MB |
Download Status: | Available |
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