जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप | JAIN PARAMPARA MEIN DHYAN KA SWAROOP HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Jain Parampara Mein Dhyan Ka Swaroop Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

जैन धर्म निवृत्ति प्रधान धर्म है। वर्तमान अवसर्पिणी काल में इसके प्रणेता आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव माने गए हैं। हिन्दू पुराणकारों ने उनका गौरव के साथ उल्लेख किया है। वे योगमार्ग के प्रवर्तक स्वीकार किए गए हैं। श्रीमद्भागवत में कहा गया है:

"भगवान ऋषभदेव ने योगियों के लिए योग्य आचरण दिखाने के उद्देश्य से अनेक योगचर्याओं का आचरण किया, क्योंकि वे स्वयं भगवान, मोक्ष के स्वामी एवं परम महात्मा थे। उन्हें बिना चाहे आकाश में उड़ना, मन के समान सर्वत्र गति, अंतर्धान, परकाय प्रवेश और दूरदर्शन जैसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, किन्तु उन्हें उनकी कोई इच्छा नहीं थी। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव लोकपाल शिरोमणि होते हुए भी सब ऐश्वर्यों को तृण समान त्यागकर अकेले अवधूतों की भाँति विचरण करने लगे। देखने में वे एक सिद्ध योगी जान पड़ते थे, किंतु सिवाय ज्ञानियों के, मूढ़जन उनके प्रभाव और ऐश्वर्य को समझ नहीं सकते थे। यद्यपि वे जीवन्मुक्त थे, फिर भी योगियों को यह सिखाने के लिए कि शरीर का त्याग कैसे करना चाहिए, उन्होंने अपने स्थूल शरीर का त्याग करने की इच्छा प्रकट की। जैसे कुम्हार का चाक घुमाने के बाद छोड़ देने पर कुछ समय तक स्वतः घूमता रहता है, उसी प्रकार लिंग शरीर के त्याग के बाद भी योगमाया की वासना के कारण भगवान ऋषभदेव का स्थूल शरीर संस्कारवश भ्रमण करता हुआ कोंकण, बंग, कुटक और दक्षिण कर्नाटक देशों में यदृच्छा पूर्वक पहुँचा। जहाँ कुटकाचल के उपवन में वे बड़ी जटा फैलाए, नंग-धड़ंग अवस्था में विचरण करने लगे। अचानक वन में वायु के वेग से बाँस हिलने लगे। परस्पर बाँसों की रगड़ से दावानल उत्पन्न हो गया और देखते ही देखते वह दावानल सब जगह फैल गया। उसी अग्नि में ऋषभदेव का स्थूल शरीर भस्म हो गया।"

भगवान ऋषभदेव की परंपरा के जैन तीर्थंकरों की सभी प्रतिमाएँ ध्यानस्थ मुद्रा में प्राप्त होती हैं। जैन परंपरा में योग के स्थान पर ध्यान शब्द का अधिक प्रयोग हुआ है। यहाँ योग शब्द मन, वचन, और काय की प्रवृत्ति के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। परवर्ती साहित्य में ध्यान के अर्थ में भी योग का प्रयोग मिलता है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप | Jain Parampara Mein Dhyan Ka Swaroop
Author:Dr. Simarani Sharma
Total pages:278
Language: हिंदी | Hindi
Size:9.6 ~ MB
Download Status:Available


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