Kali Tantram Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
तन्त्रशास्त्र हिन्दू धर्म का विश्वकोष है। उसमें हिन्दू धर्म की सभी साधनाओं की विधियाँ अङ्कित हैं। यह शास्त्र मुख्यतः आगम और निगम की दो श्रेणियों में विभक्त है। इसके अतिरिक्त बहु- संख्यक तन्त्रग्रन्थ डामर, यामल, उड्डीश आदि नामों की श्रेणियों में भी विभक्त हैं और उपतन्त्रों की भी इसी प्रकार की एक बड़ी संख्या है। मतलब यह कि तन्त्रों एवं तद्विषयक ग्रन्थों का अलग ही एक बहुत बड़ा साहित्य-भण्डार है परन्तु इसके अधिकांश ग्रन्थ समय के उल्टे प्रवाह के कारण लुप्त हो गये हैं। तो भी जो ग्रन्थ आज उपलब्ध हैं, वे वर्तमान धर्मग्लानि के काल में भी तन्त्रशास्त्र का गौरव अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए पर्याप्त हैं।
तन्त्रधर्मानुयायी आगम, निगम और डामर-यामल की श्रेणी के ग्रन्थों को ईशवाक्य मानते हैं और वेदों के ही समान उन्हें पूजते हैं। इन पूज्य ग्रन्थों में युगविशेष के धर्म का उपदेश किया गया है। महानिर्वाणतन्त्र में लिखा है कि कलिदोष के कारण द्विज लोग पवित्रापवित्र का विचार नहीं करेंगे। अतएव वे वैदिक कृत्यों द्वारा मुक्तिलाभ करने में समर्थ नहीं होंगे। ऐसी स्थिति में स्मृतियाँ और संहितायें मनुष्य जाति को कल्याण की ओर नहीं ले जा सकेंगी । हे प्रिये ! मैं तुमसे सत्य कहता हूँ कि कलिकाल में आगमसम्मत धर्म को छोड़कर दूसरा कोई मार्ग ही नहीं है।
अब वैदिक मन्त्र निविष सर्प के सदृश शक्तिहीन हो गए हैं। जो व्यक्ति कलिकाल में दूसरे धर्मग्रन्थों के अनुसार अपना उद्देश्य सिद्ध करना चाहता है वह मूर्ख है, प्यास से पीड़ित होकर वह गंगा की बाल में कुआँ खोदना चाहता है। इस युग में तन्त्रोक्त मन्त्र ही शीघ्र फलप्रद है।
परन्तु अज्ञानवश एवं अन्य कारणों से साधारण आस्तिक हिन्दू तन्त्र शास्त्र के महत्त्व को नहीं स्वीकार करते। यही नहीं, कोई कोई तो उनका विरोध तथा निन्दा तक करते हैं। परन्तु उनका ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि आस्तिक हिन्दू तो किसी न किसी देवता का उपासक होता ही है। वह शैव, वैष्णव या शाक्त आदि है तो उसने अपने इष्टदेव के मन्त्र की दीक्षा तो ली ही होगी, अपने इष्टदेव की यथाशक्ति षोडशोपचार से पूजा करता ही होगा । ऐसी दशा में वह तन्त्रशास्त्र की उपेक्षा कैसे कर सकता है? शास्त्र- चिन्ता में निरत रहने वाला आस्तिक हिन्द यह जानता ही है। वह स्वयं भी तो तन्त्रशास्त्र के अनुसार ही अपने धर्म की साधना करता है और ऐसे व्यक्ति का तन्त्रशास्त्र का विरोध करना उसके अज्ञान का ही सूचक होगा ।
वस्तुतः तन्त्रशास्त्र सार्वजनिक और सार्वदेशिक शास्त्र है। उसमें शैवों, वैष्णवों, शाक्तों आदि सभी भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों की भिन्न-भिन्न उपासनाविधियों का वर्णन है और यह शास्त्र सम्पूर्ण आस्तिक हिन्दू समाज पर आज भी अपना प्रभाव डाले हुए है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | काली तन्त्रम् | Kali Tantram |
Author: | Pt. Laxmidatta Shastri Malviya |
Total pages: | 92 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 24 ~ MB |
Download Status: | Available |
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