कामाख्यातन्त्रम् | KAMAKHYA TANTRAM HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Kamakhya Tantram Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

विश्व में प्राणीमात्र आनन्द की गवेषणा में नित्य निरत है। परम सत्ता निज स्वातन्त्र्यवश अपने असीम चित् आनन्द स्वरूप को विस्मृत कर देती है। पश्चात् पुनः उस स्वरूप को प्राप्त करने के उद्देश्य से अनेक मार्गों का प्रवर्तन करती है। ये प्रवर्त्तित मार्ग लोक में सम्प्रदाय के नाम से जाने जाते हैं । प्रत्येक सम्प्रदाय किसी न किसी धर्मद्रष्टा के द्वारा प्रवर्तित होता है। पुराकल्प में कहा गया है-

'यां सूक्ष्मां नित्यामतीन्द्रियां वाचं ऋषयः साक्षात्कृतधर्माणः मन्त्रदृशः पश्यन्ति तां असाक्षात्कृतधर्मभ्यः परेभ्यः प्रतिवेदयिष्यमाणा बिल्मं समामनन्ति, स्वप्ने वृत्तमिव दृष्टश्श्रुतानुभूतमाचिख्यासन्ते ।'

जिन्होंने धर्म का साक्षात्कार कर लिया है वे मन्त्रद्रष्टा ऋषिगण नित्य इन्द्रियातीत सूक्ष्मावाक् का दर्शन करते हैं। जिन्हें धर्म का साक्षात्कार नहीं हुआ है ऐसे लोगों को सूक्ष्मावाक् का दर्शन कराने के लिये वे बिल्म का समाम्नान अर्थात् उपदेश करते हैं। बिल्म का अर्थ है- निगमागम और उनके अङ्ग । शाक्तमतानुसार यह सूक्ष्मावाक् परमशिव की पराशक्ति है। यही शास्त्र के रूप में प्रकट होती है। तत्तत् सम्प्रदाय के लोग इस शास्त्र का अनुसरण कर अपने को कृतार्थ करते हैं।

तान्त्रिक वाङ्मय में छह सम्प्रदायों का स्वीकार किया गया है। इन्हें आम्नाय कहते हैं। ये हैं- पूर्वाम्नाय, पश्चिमाम्नाय, उत्तराम्नाय, दक्षिणाम्नाय, ऊर्ध्वाम्नाय तथा अधराम्नाय । कोई-कोई विद्वान् अधराम्नाय को अस्वीकृत कर अनुत्तराम्नाय की चर्चा करते हैं। तथ्य यह है कि अनुत्तराम्नाय ऊर्ध्वाम्नाय दोनों एक हैं। परशुरामकल्पसूत्र के अनुसार 'संसार लीला के अनुरञ्जक भगवान् शङ्कर ने दर्शन, स्मृति शास्त्र एवं अट्ठारह विद्याओं की रचना करने के अनन्तर संविन्मयी भगवती आद्याशक्ति के प्रत्यक्ष के लिये अपने सद्योजात वामदेव अघोर तत्पुरुष और ईशान नामक पाँच मुखों से पञ्चाम्नाय को प्रकट किया।' उपर्युक्त पाँचों सम्प्रदायों का उद्देश्य मनुष्य के भीतर निहित विद्युत् पुञ्ज के समान उद्दीप्त जीवनशक्ति की उपासना कर उसका साक्षात्कार करना है। इन सम्प्रदायों में कौलसम्प्रदाय को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। तन्त्रालोक का वचन है-

'नभः स्थिता यथा तारा न भ्राजन्ते रवी स्थिते ।
एवं सिद्धान्ततन्त्राणि न विभान्ति कुलागमे ॥
तस्मात् कुलादृते नान्यत् संसारोद्धरणं प्रति ।'

जिस प्रकार आकाश में सूर्य के विद्यमान रहने पर तारायें प्रकाशित नहीं होतीं उसी प्रकार कौल सम्प्रदाय के रहने पर सिद्धान्त तन्त्र महत्त्वहीन हो जाते है। इस कारण संसार से उद्धार के लिये कौलमार्ग से भिन्न अन्य मार्ग समीचीन नहीं है।

जीव के अन्दर निहित ऊर्जस्वल शक्ति के साक्षात्कार के लिये तमस् रजस् एवं सत्त्व गुण के आधार पर साधकों के तीन प्रकार के भावों की चर्चा शास्त्रों में आती है। वे है- पशुभाव, वीरभाव और दिव्यभाव । इन तीनों के अन्दर तीन-तीन अनुभाव है-

पशुभाव--- १. वेदाचार, २. वैष्णवाचार, ३. शैवाचार
वीरभाव--- १. दक्षिणाचार, २. सिद्धान्ताचार, ३. वामाचार
दिव्यभाव---- १. अघोराचार, २. योगाचार, ३. कौलाचार

कौलाचार को ज्ञानाचार, संन्यासाचार, अवधूताचार निराचार भी कहते है। इस प्रकार हम देखते है कि कौलाचार सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। इस तथ्य को निम्नलिखित

श्लोक के द्वारा व्यक्त किया गया है-

'वेदाच्छेवं ततो वामं ततो दक्षं ततस्त्रिकम् । त्रिकात् परं कुलं प्रोक्तं कौलात् परतरं न हि ॥'

कामाख्यातन्त्र कौलसाधना का प्रतिष्ठापक ग्रन्थ है। बारह पटलों में निबद्ध इस ग्रन्थ में भगवती कामाख्या का स्वरूप, मन्त्रोद्धार, ध्यान, पूजा, मन्त्रवर्णन, साधनापद्धति, गुरुतत्त्व, कामकलासाधनपद्धति, अनुष्ठानविधि, अभिषेक, मुक्ति- तत्त्व, कामाख्या देवी का स्वरूप, कामाख्या सहित अन्य सिद्ध पीठों का वर्णन, मन्त्रों की कुल्लुकाओं का वर्णन, कालिकापुराणान्तर्गत कामाख्यावर्णन आदि का समावेश है । इस ग्रन्थ के सानुवाद सम्पादन एवं प्रकाशन के लिये मैं अपनी इष्टदेवता पराम्बा भगवती गायत्री का साष्टाङ्ग प्रणामपूर्वक आधमर्ण्य प्रकट करता हूँ। उनकी अमेय कृपाकिरण से मेरा मन इस ग्रन्थ के सानुवाद सम्पादन में प्रवृत्त हुआ ।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:कामाख्यातन्त्रम् | Kamakhya Tantram
Author:Acharya Radheshyam Chaturvedi
Total pages:200
Language: हिंदी | Hindi
Size:73 ~ MB
Download Status:Available


Name of the Book is : Kamakhya Tantram | This Book is written by Acharya Radheshyam Chaturvedi | The size of this book is 73 MB | This Book has 200 Pages | The Download link of the book "Kamakhya Tantram " is given Below, you can downlaod Kamakhya Tantram from the below link for free.

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