कौल ज्ञान निर्णय | KAULA GYAN NIRNAYA HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

नाथ-सम्प्रदाय एक ऐसा गंगा-यमुनी संगम है जहाँ आकर दो नदियाँ परस्पर मिलकर एक नए तीर्थ का निर्माण करती हैं। इनमें एक नदी तो योग की है और दूसरी तंत्र की है। इसमें जो तंत्र की नदी है उसी का जलामृत लेकर मत्स्येन्द्रनाथ ने 'कौलज्ञान निर्णय' का निर्माण किया है।

मत्स्येन्द्रनाथी नाथ-पंथ की मन्दाकिनी के जो दो तट हैं उनमें एक है योग साधना का तो दूसरा है तंत्र-साधना का। योग साधना का सम्बन्ध 'शिव' से है तो तंत्र-साधना का 'शक्ति' से। यद्यपि शैव एवं शाक्त दो भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय है और उनके उपास्य (इष्ट) देवता भी भिन्न है और क्रमशः वे 'शिव' एवं 'शक्ति' हैं तथापि नाथ-पन्थ में दोनों की उपासना उसी प्रकार एक साथ प्रचलित है जैसे काश्मीर के शैवों में। काश्मीरी शैव तांत्रिकों में 'प्रत्यभिज्ञा सम्प्रदाय' के अनुयायी शिवोपासना करते हैं तो 'स्पन्द सम्प्रदाय' के अनुयायी शक्ति की उपासना। तथापि वे तत्त्वतः शिव और शक्ति को अभिन्न मानते हैं।

नाथ-सम्प्रदाय में जो तांत्रिक साधना का संचार है उसका सम्बंध मात्र शाक्त तांत्रिकों की 'कौलधारा' से है। शाक्त तंत्र की साधना (१) कौलमार्ग, (२) समय मार्ग एवं (३) मिश्रमार्ग तीनों मार्गों द्वारा की जाती है, किन्तु मत्स्येन्द्रनाथ ने शाक्त साधना की कौल धारा को अङ्गीकृत किया था। अपने द्वारा आत्मीकृत तंत्र की इसी कौलधारा की नींव पर ही उन्होंने 'कौलज्ञाननिर्णय' का भवन निर्मित किया है।

योगीश्वर मत्स्येन्द्रनाथ तांत्रिक योगी थे। योगियों के मुख्यतः तीन वर्ग हैं- १. पातञ्जल योग के अनुयायियों का वर्ग, २. तांत्रिक योग के अनुयायियों का वर्ग और ३. जैन-बौद्ध आदि मतों के योगानुयायियों का वर्ग।

नाथ-सम्प्रदाय का योग पातञ्जल योग का अनुवर्ती योग नहीं है। यह तांत्रिकों के योग का अनुवर्ती है। इस पर जैन-बौद्ध योग का प्रभाव नगण्य है। तांत्रिक शाक्तमत, तांत्रिक शैवमत और काश्मीरी शैव मत (त्रिकमत) इन तीनों मतों का नाथमत पर प्रभाव है।

शाक्तमत के सम्प्रदाय - १: समयमत, २: कौलमत, ३: मिश्रमत

'यद्वा समयमतं कौलमतं मिश्रमतं चेति विद्योपास्तौ मतत्रयम्। शुकवसिष्ठादि संहितापंचकोक्तं वैदिकमार्ग करम्बितमाद्यम् । चन्द्रकुलादितन्त्राष्टकोक्तं तु चरमम् । कुलसमयोभयानुसारित्वात् । एतद्भित्र तन्त्रोदितं 'कौलमार्गम्'। कौलैर्मृग्यत् इत्यर्थे कर्मणि घञ्। 'स्व स्व वंशपरम्परा-प्राप्तो मार्गः कुलसंबंधित्वात् कौलः।।

त्रिपुरा सम्प्रदाय की श्रीविद्या (शाक्तमत) के द्वादश सम्प्रदाय

१: मनु, २: चन्द्र,  ३: कुबेर, ४: लोपामुद्रा, ५: मन्मथ, ६: अगस्त्य, ७: अग्नि, ८: सूर्य, ९: इन्द्र, १०: स्कन्द, ११: शिव, १२: क्रोधभट्टारक दुर्वासा

श्री विद्या के १२ सम्प्रदाय

मनुश्चन्द्रः कुबेरच लोपामुद्रा च मन्मथः।
अगस्तिरग्निः सूर्यश्च इन्द्रः स्कन्दः शिवस्तथा।
क्रोधभट्टारको देव्या द्वादशामी उपासका।। 

यद्यपि नाथों ने शाक्तमत की 'श्रीविद्या' एवं 'दशमहाविद्या' या 'त्रिपुरासम्प्रदाय' की स्पष्टतः अनुवर्तिता तो नहीं की किन्तु शाक्तमत के 'कौलमार्ग' एवं 'समय-मार्ग' का अनुवर्तन अवश्य किया और इसी कारण मत्स्येन्द्रनाथ के दर्शन पर कौलमत एवं त्रिपुरोपासना का प्रभाव दृष्टिगत होता है।

'कुल' क्या है? भास्करराय कहते हैं-

(१) 'कुः पृथ्वीतत्त्वं लीयते यत्र तत्कुलमाधारचक्रं।
(२) 'तत्सम्बंधाल्लक्षणया सुषुम्णा मार्गोऽपि।
(३) 'अतः सहस्त्रारात्स्स्रवदमृतं कुलामृतम् ।।

'कुल'- (१) आधार चक्र (२) सुषुम्णा मार्ग।

'कुलं' सजातीय समूहः। स चैकज्ञातविषयत्वरूप साजात्यापन्न 'ज्ञातृ' 'ज्ञेय' 'ज्ञान' रूप त्रयात्मकः।

मूलाधारादिक चक्रषट्क भी 'कुल' हैं- 'मूलाधारादिकं चक्रषट्‌कं कुलमिति स्मृतम् ।।'

'कौल' कौन है? जो 'कुल' (कुण्डलिनी = "कु = पृथ्वीतत्वात्मक मूलाधार चक्र में। "ल" = लीन। (अर्थात् परा शक्ति कुण्डलिनी) को मूलाधार चक्र से ऊपर उठाकर सहस्त्रारचक्रस्थ 'अकुल' (परात्पर शिव। परमशिव) से मिला दे- ('कुल' एवं 'अकुल' में सामरस्य स्थापित कर दे) उसे ही 'कौल' कहते हैं।

 'भावचूड़ामणि' में समत्वयोगी को 'कौल' की आख्या दी गई है। यह वह योगी है जिसे कर्दम और चन्दन, पुत्र-शत्रु, श्मशान भवन एवं काञ्चनतृण में कोई भिन्नता (भेद) दृष्टिगत न होती हो-

'कर्दमे चन्दनेऽभिन्त्रं पुत्रे शत्रौ तथा प्रिये।
श्मशाने भवने देवि ! तथैव काञ्चने तृणे।
न भेदो यस्य देवेशि! स कौलः परिकीर्तितः।।

'श्यामारहस्य' में इनका लक्षण इस प्रकार बताया गया है-

'अन्तः शाक्ता बहिः शैवाः सभायां वैष्णवा मताः। नानारूपधराः कौलाः विचरन्ति महीतले।।'

'भावरहस्य' में कहा गया है कि 'कुल' का अर्थ है कुण्डलिनी एवं 'अकुल' का अर्थ है शिव। वह कुलीन साधक जो दोनों को परमतत्त्व के रूप में स्वीकार करता है वह अत्याश्रमी साधक ही कौल है- 'कुलं कुण्डलिनी ज्ञेया महाशक्तिस्वरूपिणी। अकुलन्तु शिवः प्रोक्तः शुद्धसत्वमयो विभुः।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:कौल ज्ञान निर्णय | Kaula Gyan Nirnaya
Author:Shyamakant Dwivedi Anand
Total pages:257
Language: हिंदी | Hindi
Size:122 ~ MB
Download Status:Available


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