प्रेमिक गुरु | PREMIKA GURU HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

श्वेतांवर श्वेतविलेपयुक्तं मुक्ताफलाभूषितदिव्यमूर्तिम् । बामांगपीठे स्थितदिब्यशक्तिं मन्दस्मितं पूर्ण कृपानिधानम् ॥

इस ध्यान मंत्र का लक्ष कल्पतरु श्रीगुरु है जिनकी कण मात्र कृपा बिना प्रेम भक्ति को लाभ करना संभव नहीं। उसी प्रेम- सिन्धु-दीन-बन्धु को दया से "प्रमिकगुरु” आपके करकमलों में प्रमानन्द से अर्पण कर रहा हूँ।

प्रमभक्ति अहैतुक होती है। उसका एकमात्र हेतु साधु- गुरु की कृपा है। प्रेममय भगवान अथवा उनके भक्तों की कृपा बिना हम इसे लाभ नहीं कर सकते। जिस भक्ति की चर्चा मात्र से ही हृदय रोमांचित हो उठता है, उस प्रेम का तत्व भाषा के द्वारा प्रकाश करने की चेष्टा बिड़म्वना मात्र है। इसीलिये प्रोम- भक्ति का विषय आते ही प्रायः बागाडम्वर अथवा भाव एवं भाषा में एक कृत्रिम उच्चछ्स सा उठने लगता है। किन्तु भक्ति स्वतः ही हृदयग्राहिणी होने के कारण, इसकी चर्चा से बुद्धिमान का हृदय पुलकित, साधु का हृदय आनन्दयुक्त, और भक्त का हृदय नृत्य करने लगता है। इस कठिन भक्तितत्व को मुझ जैसा भक्तिहीन व्यक्ति कैसे व्यक्त कर सकता है ?

जिसकी कृपा से पंगु चलने लगता है, गुंगा भी बोल उठता है-उसी की कृपा से मैं 'प्रेमिकगुरु' लिखने बैठा हूँ। इस पुस्तक में यदि कुछ सुन्दरता दीखाई पड़े तो वह श्यामसुन्दर की द्युति समझिये और यदि कुछ असुन्दर नजर में आये तो वह मेरे हृदय का उच्छ्वास है। स्वरूपतः भगवान, भक्ति और मक्त एक है। अतः भगवान की तरह भक्ति भो सर्वथा पूर्ण होती है। यदि इस ग्रंथ में भक्ति की पूर्णता विकसित न हुई हो, तो वह दोष मेरा है।

भक्तितत्व में साधनभक्ति, भावभक्ति, प्रमभक्ति आदि नाना प्रकार के भेद बर्तमान रहते हुये भी, स्वरूपतः वे एक हैं।. भक्ति साधना के आरंभ से लेकर प्रेम लाभ करने तक, साधक के क्रमोन्नत अवस्था की स्तरों के नामानुसार भक्ति को विभिन्न नामों में विभक्त किया गया है। किन्तु भक्त मात्र का लक्ष उसी प्रेम को लाभ करना होता है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:प्रेमिक गुरु | Premika Guru
Author:Paramhans Nigamand
Total pages:390
Language: हिंदी | Hindi
Size:36 ~ MB
Download Status:Available


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