Sahaja Yoga Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'सह' अर्थात 'साथ', 'ज' अर्थात 'जन्मी', 'योग' अर्थात दैवी प्रेम की सर्व- व्यापक शक्ति से जुडना है। उत्थान द्वारा उत्तम चेतना प्राप्ति का यह सूक्ष्म विषय पूर्णतया तर्क-संगत है और इसे प्रमाणित किया जा सकता है।
सर्वप्रथम जिज्ञासु होकर, वैज्ञानिक दृष्टीकोन से व्यक्ति को इस विषय तक पहुँचना चाहिए। परिकल्पना के समान, सम्मान पूर्वक इस विषय का विवेचन होना चाहिए और परीक्षण करने पर यदि सत्य पाया जाये तो निष्कपटता पूर्वक सचरित्र लोगों द्वारा यह स्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह विषय व्यक्ति के पूर्ण हित के लिए तथा पूरे विश्व के हित लिए है।
यह ज्ञान अति प्राचीन है तथा इसका उद्गम भारत से ही है। निःसन्देह हर धर्म ने पुनर्जन्म तथा जीवन वृक्ष की बात की। विज्ञान के ज्ञान का उद्गम जैसे पश्चिम से है, परन्तु पूर्व इसे स्वीकार करता है, इसी प्रकार सत्य के इस ज्ञान को क्यों अस्वीकार किया जाना चाहिए? मानव सभ्यता की जड़ों और विकास के इस ज्ञान को, कम से कम, गम्भीरता पूर्वक क्यों न लिया जाये ? राष्ट्रों को सोचना पड़ेगा कि क्यों आधुनिक सभ्यता मानवीय मूल्यों को नष्ट कर रही हैं। हम कहाँ भटक गये हैं? इसे जानने के लिए सावधानीपूर्वक अन्तरदर्शन आवश्यक है। उत्थान पथ पर हम कहां भटक गए हैं? यह सड़न किस प्रकार रेंग कर हमारे समाज में आ गई है। असुरक्षा तथा निराशा से हम में से अधिकतर क्यों पीड़ित हैं? विकास-शील देशों के अधिकतर लोग क्यों शारीरिक तथा मानसिक अधोगति के सम्मुख नत-मस्तक हैं? विज्ञान के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं, अतः आइये हम आध्यात्मिकता की शरण लें। एक प्रश्न क्यों न पूछें? ब्रह्माण्ड का संचालन करने वाली क्या कोई अन्य शक्ति है ?
सभी शास्त्रों में वर्णित परमात्मा के प्रमे की एक सर्वव्यापक शक्ति है, परम चैतन्य। यह एक सूक्ष्म शक्ति है जो वे सारे जीवन्त कार्य करती है, जिन्हें मानवीय चेतना के स्तर पर अनुभव नहीं किया जा सकता। सहज योग, अर्थात एक साधक को स्वतः आत्म साक्षात्कार प्राप्त करने का जन्म सिद्ध अधिकार है। आत्म साक्षात्कार या आत्म ज्ञान सभी धर्मों तथा मानवीय विकास का लक्ष्य है। यह अन्तिम उपलब्धि है जिसे मानव ने पाना है, जिसके लिए मनुष्य के रीढ़ की हड्डी (मेरुरज्जु) पर तथा मस्तिष्क में पूरा जीवन्त यंत्र स्थापित किया है। हमारी विकास प्रक्रिया के दौरान यह तंत्र धीरे - धीरे स्थापित हो रहा है। सहानुकम्पी (मध्य नाड़ी तंत्र) तथा दोनों अनुकम्पियों (बायां तथा दायां नाड़ी तंत्र) की अभिव्यक्ति करने की अपनी शक्ति के माध्यम से यह जीवन्त यंत्र कार्य करता है। विकास प्रक्रिया में जो भी उपलब्धि हम पाते हैं चेतन मन उसे मध्य नाड़ी तंत्र द्वारा व्यक्त करता है।
कण-कण में व्याप्त हो जाने वाली इस सूक्ष्म उर्जा से हमारा सम्बन्ध जोड़ने के लिए शुध्द इच्छा शक्ति है जिसे मनुष्य की पवित्र अस्थि में रखा गया है और जो कुण्डलिनी कहलाती है। यह कुण्डलाकार होती है। यह साढ़े तीन कुण्डलों में विद्यमान है। साढ़े तीन कुण्डलों का भी दैवी गणितीय महत्व है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | सहज योग | Sahaja Yoga |
Author: | Mataji Nirmaladevi |
Total pages: | 73 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1 ~ MB |
Download Status: | Available |
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