Vamakeswarimatam Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
यह पुस्तक 'वामकेश्वरीमतम्' वामकेश्वर तन्त्र का पहला भाग है। कुछ विद्वान् वामकेश्वरतन्त्र के पहले भाग को 'वामकेश्वरीमतम्', दूसरे भाग को 'नित्या- षोडषीकार्णव' और तीसरे भाग को 'योगिनी हृदय' मानते हैं; परन्तु अब ये तीनों ग्रन्थ पृथक् पृथक् स्वतन्त्र रूप से प्रकाशित है। 'वामकेश्वरीमतम्' काश्मीर सरकार द्वारा प्रकाशित तांत्रिक सीरिज या तान्त्रिक ग्रन्थमाला के क्रमांक ६६ पर प्रकाशित है।
वामकेश्वरतन्त्र श्रीविद्या उपासना का एक सर्वोत्तम मान्य ग्रन्थ है। अनेक तन्त्र ग्रन्थों में इसके उद्धरण मिलते हैं। वामकेश्वरतन्त्र पर बहुत टीका और भाष्य उपलब्ध है। इससे यह कहा जा सकता है कि यह श्रीविद्या उपासना का बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। आद्य शंकराचार्य की सौन्दर्यलहरी के व्याख्याकार श्रीलक्ष्मीधर ने श्लोक ३१ में इसे पूर्ववर्ती ६४ तन्त्रों के बाद पैंसठवा तन्त्र कहा है। चौंसठ तन्त्रों का उल्लेख जयरथकृत तन्त्रालोकविवेक, श्रीकण्ठ संहिता, कुलचूड़ामणि, नित्याषोडशीकार्णव, सर्वोल्लासतन्त्र और महासिद्धसारतन्त्र में विष्णुक्रान्ता के ६४ विष्णुक्रान्ता के ६४ अश्वक्रान्ता के ६४ तन्त्र परिगणित है। इसके सम्बन्ध में विद्वानों के मतैक्य नहीं है। किन्तु लक्ष्मीधर वैष्णव थे इसलिये उन्होंने विष्णुक्रान्त के चौंसठ तन्त्रों के बाद वामकेश्वरतन्त्र को पैसठवाँ तन्त्र माना है।
'वामकेश्वरीमतम्' में वामकेश्वरी के सन्धि विच्छेद करने पर वामक और ईश्वरी दो शब्द बनते हैं। वामक से वाममार्ग माना जा सकता है। ईश्वरी देवी के लिये प्रयुक्त होता है। 'मतम्' का अर्थ मान्य होता है। अतः कहा जा सकता है और विद्वानों के मत भी हैं कि वामकेश्वरीमतम् वाममार्ग प्रधान कौलमार्ग का ग्रन्थ है।
श्रीविद्या ललिता महात्रिपुरसुन्दरी को वामकेश्वरी कहा गया है, जो सृष्टि, स्थिति और लय करने वाली हैं। यह श्रीचक्र के रूप में प्रकट होती हैं। श्रीचक्र काल चक्र का ही स्वरूप है। इस ग्रन्थ में बाहरी पूजा पाठ से अधिक बल आन्तरिक उपासना पर दिया गया है। यह कौलमत के प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। वामकेश्वरीमतम् को समझने में कठिनाई होती है; क्योंकि इसकी भाषा में प्रतीक या संकेत शब्दों के प्रयोग अधिक है। मन्त्रों, यन्त्रों के उद्धार में पृथक् अक्षरों को सांकेतिक शब्दों में प्रयोग किया गया है। इन्हीं बीजों से पूजन यन्त्र और मन्त्र का निर्माण होता है। प्रथम पटल में अष्टमातृका देवियों के लिये प्रयुक्त प्रतीक देखा जा सकता है। चौथे पटल के श्लोक ४५-४६ में काम के वर्णन है। पर वास्तव में ये कामदेव पाँच बीजों के वर्णन है। उद्धार करने पर कामदेव के पाँच बीज ह्रीं क्लीं ऐं ब्लू और स्त्रीं हैं। श्लोकों में इनके यन्त्रों के निर्माण के भी वर्णन हैं।
इन संकेतों को दीक्षित शिष्यों को गुरुदेव बतलाते हैं। कौल प्रतीक जैसे चौरास्ता, श्मशान भूमि, शराब आदि का वास्तविक अर्थ प्रत्यक्ष अर्थ से भित्र है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | वामकेश्वरीमतम् | Vamakeswarimatam |
Author: | Kapildev Narayan |
Total pages: | 108 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 37 ~ MB |
Download Status: | Available |
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