Yog Vigyan Ke Mula Tattwa Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
योगविद्या भारतवर्ष की एक अमूल्य संपत्ति है। वही एक ऐसी विद्या है। जिमसें वाद-विवाद के लिये कहीं स्थान नहीं है। सृष्टि के आदिकाल से ही भारत के महान साथक गण इस सनातन साधना का युग-युग से अखण्ड रूप से अभ्यास करते आ रहे है। उन्होने योग को कैवल्य-मोक्ष की प्राप्ति के लिये सर्वोत्तम साधन पद्धति के रूप में स्वीकार किया है। पाणिनीय संस्कृत व्याकरण के अनुसार गणपाठ में तीन "युज्धातु" है। तीनों ही धातुओं से योग शब्द निष्पन्न होता है, परन्तु तीनों का अर्थ थोड़ा-थोड़ा भिन्न हो जाता है। इनमें से दिवादिगणीय युज-समाधौ धातु से जो योग शब्द बनता है- उसका अर्थ समाधि है।
रूध् गादिगणीय युजिर-योगे धातु से जो योग शब्द बनता है- उसका अर्थ संयोग मेल या एकत्व होता है। चुरादिगणीय युज- संयम ने धातु से जो योग शब्द बनता है- उसका अर्थ संयमन या नियमन करना है। भाव्यकार महर्षि व्यासजी ने युज-समाधौ धातु का अर्थभूत तात्पर्य को लेकर - "योगः समाधिः ऐसा योग का अर्थ किया है। अर्थात् समाधि का नाम योग है। योग और समाधि दोनों पर्याय शब्द होने के कारण एकार्थक है। अतः यम-नियम आदि योगांगों द्वारा समाधि को प्राप्त कर लेना और समाधि की पराकाष्ठा में पहुंचकर आत्मदर्शन पूर्वक स्वरूप व स्थिति को प्राप्त कर लेना ही योग है। अतः योग का विशेष अर्थ तो समाधि ही है। योगाशास्त्र का प्रारम्भ कब हुआ ? अथवा इसके आदि प्रवर्तक कौन है? इस संबंध में प्रामाणिक रूप में कुछ भी कहना संभव नहीं है, क्योंकि अपने संबंध में कुछ, कहना अथवा समकालीन राजा, महाराजाओं का गुणगान करना भारतीय मनीषियों के स्वभाग में ही रहा है, तथापि विविध अन्य माध्यमों से जो संकेत प्राप्त होते है, उनके आधार पर योगशास्त्र के उद्भव का अथवा उसकी प्राचीनता का कुछ अनुमान किया जा सकता है। वेदों, उपनिषदों और ब्राह्मण ग्रन्थों में भी योग विषयक पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है।
ऋग्वेद में कहा गया है कि ईश्वर की कृपा से ही योग हमें योग सिद्ध होकर विवेक ख्याति तथा ऋतम्थरा प्रज्ञा प्राप्त हो, वहीं ईश्वर अणिमा आदि सिद्धियों सहित हमारी ओर आवे। ऐसी प्रार्थना का उल्लेख प्राप्त होता है। (अथर्ववेद 10.2.31) मे शरीर को अयोध्या पुरी बताते हुये उसका वर्णन इस प्रकार किया है "इस शरीर रूपी आयोध्यापुरी में आठ चक्र है और उसके नवद्वार है। इसमें आत्मा निवास करता है। इस शरीर के माध्यम से योगविद्या द्वारा नवद्वारों को बन्द कर अष्टचक्रों का ज्ञान प्राप्त करते हुए उस आत्मा को जानना चाहिए। उपनिषदों मे वैदिक उपदेशों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उपनिषदों में योग को सर्वाधिक महत्वपूर्ण.....
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | योग विज्ञान के मूल तत्त्व | Yog Vigyan Ke Mula Tattwa |
Author: | Sk Book Agency |
Total pages: | 218 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 4 ~ MB |
Download Status: | Available |
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