Yogadarshan Tatha Yogavinshika Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
योगविंशिका-यह मूल ग्रन्थ प्राकृतमें है। इसका परिमाण और विषय इसके नामसे प्रसिद्ध है, अर्थात् यह वीस गाथाओंका योग सम्बन्धी एक छोटा सा ग्रन्थ है। इसके प्रणे ताने वीस वीस गाथाओंकी एक एक विंशिका ऐसी बीस' विशिकाएँ रची हैं, जो सभी उपलब्ध हैं। उनमें प्रस्तुत योग- विंशिकाका सत्रहवाँ नंबर है, इसमें योगका वर्णन है।
इसके प्रणेताके संस्कृत भाषामें भी जैन दृष्टिके अनुसार योग पर बनाये हुए योगबिंदु, योगदृष्टिसमुच्चय और षोडशक ये तीन ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं जो छप चुके हैं। इसके सिवाय उनका बनाया हुआ योगशतक नामका ग्रन्थ भी सूना जाता है। एक ही कर्ताके द्वारा एक ही विषय पर लिखे गये उक्त चारों ग्रन्थोंकी वस्तु क्या क्या है और उसमें क्या समानता तथा क्या असमानता है इत्यादि कई प्रश्न वाचकोंके दिलमें पैदा हो सकते हैं जिनका पूरा उत्तर तो वे उक्त ग्रन्थोंके अवलोकन के द्वारा ही पा सकेंगे, फिर भी हमने प्रस्तुतः पुस्तकमें इसका अलग सूचन किया है जिसके लिए हम पाठकोंका ध्यान प्रस्तावना पृष्ठ ५९ परके "आचार्य हरिभद्रकी योगमार्गमे नवीन दिशा " नामक पेरेकी ओर खींचते हैं।
योगविंशिकाकी योगवस्तुका स्थूल परिचय 'तो पाठक वहींसे कर लेवें, पर उसमें एक सामाजिक परिस्थितिका चित्रण है जिसका निर्देश यहाँ करना उपयुक्त है।
हर एक देश, हर एक जाति और हर एक समाजमें धार्मिक गुरुओंकी तरह धर्मधूर्त गुरुओंकी भी कमी नहीं होती। वैसे नामधारी गुरू भोले शिष्योंको धर्मनाशका भय दिखा कर धर्मरक्षाके निमित्त अपने मनमाने ढंगसे धर्मक्रियाका उपदेश देते हैं और धर्मकी ओटमें शास्त्रविरुद्ध व्यवहारका प्रवर्तन कराया करते हैं, ऐसे धर्मढोंगी गुरुओंकी खबर जैसे 'आवश्यक- निर्युक्तिमै श्रीभद्रबाहुस्वामीने ली है वैसे बहुत संक्षेपर्मे पर मार्मिक रीतिसे योगविशिकामें भी ली गई है। उसमें वैसे पाखंडिओंको संबोधित करके कहा गया है कि "संघ या जैन- तीर्थ मनमाने ढंगसे चलनेवाले मनुष्योंके समुदाय मात्रका नाम नहीं है, ऐसा समुदाय तो संघ नहीं किन्तु हड्डुिओंका ढेर मात्र है। सच्चा जैन-तीर्थ या महाजन तो शास्त्रानुकूल चलने बाला एक व्यक्ति भी हो सकता है। इसलिए तीर्थरक्षाके नामसे अशुद्ध प्रथाको जारी रखना यही वास्तवर्मे तीर्थनाश है, क्योंकि शुद्ध धर्मप्रथाका नाम ही तीर्थ है जो अशुद्ध धर्मप्रथासे नष्ट हो जाता है"। इसके सिवाय योगविशिकाके अन्तिम भाग- में रूपी, अरूपी ध्यानका भी अच्छा वर्णन है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | योगदर्शन तथा योगविंशिका | Yogadarshan Tatha Yogavinshika |
Author: | Sukhlal |
Total pages: | 232 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 8 ~ MB |
Download Status: | Available |
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