Mantra Vigyan Hindi Book Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'वच-परिभाषणे' इस पाणिनीयधातुपाठ में 'वच्' धातु किसी गूढ़ रहस्य को समझाने, समझने, परिचित होने के लिये किया जाता है। पुर-पुरा का तात्पर्य सबसे आगे, पहले, विषय में प्रवेश करने आदि के अर्थ में होता है। जिस प्रकार घर का दरवाजा, ग्राम-नगर आदि में जाने के गेट, दरवाजा, मार्ग आदि होते हैं उसी प्रकार किसी नाटक, ग्रन्थ, कथ्य, काव्य आदि के मौलिक तात्पर्य का अर्थ ही पुरोवाक् है।
'मन्त्र विज्ञान' नामक प्रस्तुत ग्रन्थ में यतः मन्त्र अत्यन्त गोपनीय रखने का नियम है तथापि गोपनीय रखते- रखते कितनी ही विद्यायें, योग, आयुर्वेद के औषधियाँ, पदार्थों, कहावतों, उदाहरणों को परम्परा से प्राप्त जिन अर्थों में इन शब्दों का प्रयोग पहले होता था वह परम्परा प्रायः परिवर्तितकाल में लुप्त-सी हो गई हैं। घर, खानदान, देशों के कितने रीति-रिवाज, प्रचलन, परस्पर के सम्बन्ध प्रायः इसी प्रकाशन के अभाव में कितनी अच्छी और अत्यन्त आवश्यक भी परम्परायें आज लुप्त-सी हो गई हैं जो पहले कोई किसी शक होने पर पूर्वजों में जो उपाय प्रचलित थे वह वर्तमानकाल का आधुनिक भौतिक जीवन में लुप्त-सी हो गई हैं।
विशेषकर भारतवर्ष प्राचीन परम्पराओं में देश-काल के अनुसार जो ज्ञान- विज्ञान, परस्पर मधुर-सम्बन्धों, भाई-चारे के जो नियम थे, वह आधुनिक युग में यह कहकर कि यह रूढ़िवादी परम्परा है, ऐसा कह कर आधुनिक होने का दम्भ रखने वाले लोग, क्या व्यवहार, क्या समाज, अपितु शास्त्रीय शाश्वत सुख-शान्तिदायक परम्परा का खण्डन करते रहते हैं, ऐसे लोग किन सार्वजनीन परम्परा का निर्माण कर रहे हैं, यह विज्ञों के लिये विचार का विषय है। भारतवर्ष के शाश्वत पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति में धर्म और मोक्ष की तो कल्पना ही लुप्तप्राय हो रही है। गाँव का हर व्यक्ति गाँव के किसी की बेटी को अपनी ही बेटी मानकर रक्षा करते थे।
यदि एक व्यक्ति के घर में चोरी, आग लगने, बीमार होने, शादी-विवाह में सबका सहयोग होता था, वह अब आधुनिकता की आँधी में प्रायः देखने को नहीं मिलते, भले कोई अपनी मौत से मरे अथवा जिये। विवाह, पर्व, व्रत आदि के प्राचीन नियम, वस्त्र-वेशभूषा, भोजन-पानी के जो नियम सर्वहितकारी थे, आज उनका प्रायः अभाव देखा जा रहा है। ऐसे इस आँधी में कुछ लिखने-बोलने की अपेक्षा मौन रहना ही ठीक है ऐसा कहकर बैठ जाना ठीक भी नहीं है। 'स्वाध्याय प्रवचनाभ्यां मा प्रमदितव्यम्' अर्थात् निरन्तर जिज्ञासा को लेकर उचित स्वाध्याय, उचित मार्ग पर चलना दूसरे को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करना, यह समझदार व्यक्ति का आवश्यक कर्तव्य है। आर्थोडाक्स और रूढ़िवाद यह दो आधुनिक विचार पुराने को बुरा नये को अच्छा कहकर लोभ और स्वार्थवश अपने मन का करना क्या सुख की कसौटी पर खरा उतरेगा? अतः खूब सोच-समझकर ही प्राचीनता का त्याग और आधुनिकता को स्वीकार करना चाहिये। आज विज्ञान की कसौटी पर प्रायः ऋषियों-मुनियों के स्थापित सिद्धान्त सर्वथा सत्य और सबके कल्याण के लिये उपयुक्त प्रतीत हो रहे हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मंत्र विज्ञान | Mantra Vigyan |
Author: | Prof. Rajnath Tripati |
Total pages: | 132 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 53.5 ~ MB |
Download Status: | Available |
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