Free Hindi Book Para Praveshika In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'अ' से तात्पर्य शिवकला से है और 'थ' शक्तिकला को सूचित करता है। इन दोनों के मिलन को बताने वाला 'अथ' शब्द है। 'अथ' शब्द से पुस्तक का आरम्भ करके आचार्य क्षेमराज ने इस एक ही शब्द में अनुत्तरभाव का रहस्य प्रकट किया है। ग्रन्थ का नाम "पराप्रावेशिका" है जिसका सम्बन्ध उस युक्ति या विधि से है जो साधक को पराभाव में प्रवेश कराती है। पराभाव "प्रकाश-विमर्शभाव" अर्थात् शिव-शक्ति सामरस्य को जतलाने वाला है। प्रकाश 'शिव' का और विमर्श 'शक्ति' या इस सारे जगत् का सूचक है। इससे यह बात भी सिद्ध होती है कि 'हरिरेव जगत् जगत् एव हरिः" शिव ही जगत् है और जगत् ही शिव है। इस समरसता को ही 'पराभाव' कहते है, क्योंकि छत्तीस तत्त्वों से भिन्न कोई वस्तु इस संसार में नहीं हैं। छत्तीस तत्त्व शिव का ही विस्तार है। उससे भिन्त्र कुछ भी नहीं है, अतः यह उसी का स्वरूप है। इसी दशा को 'पराभाव' कहते हैं। 'पराभाव' का उल्लेख करके जगत् के व्यवहार में काम आने वाली अन्य दो अवस्थाओं "अपरा" और "परापरा" का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक है।
अपराभाव-अपराभाव वह है जहां कर्ता (Subject) और कर्म (Object) विल्कुल अलग अलग हैं। जैसे 'अहं' में शरीर प्राण बुद्धि आदि पूर्ण "मैं" कर्ता (Subject) है और "इदं" यह घड़ा, कलम, ऐनक पट आदि कर्म (Object) है जो कर्ता के साथ किसी भी प्रकार से सम्बद्ध नहीं है, क्योंकि 'कर्ता' 'कर्म' नहीं बन सकता और 'कर्म' 'कर्ता' नहीं। इस अपराभाव में कारण (Cause) और.........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | परा प्रवेशिका | Para Praveshika |
Author: | Neel Kanth Gurtoo |
Total pages: | 42 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 4.8 ~ MB |
Download Status: | Available |
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