उत्तरतन्त्रशास्त्रम् | UTTAR TANTRA SHASTRAM HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

Uttar Tantra Shastram Hindi Book Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

मनुष्य लोक में लौट आने पर असंग ने महायान सम्बन्धी मैत्रेय के प्रसिद्ध ग्रन्थ महायानसूत्र पर अलंकार लिखा। तत्त्व विनिश्चय, उत्तरतंत्र एवं सन्धि निर्मोचन सूत्र पर व्याख्याएँ उन्होंने लिखीं। इनके प्रमुख ग्रन्थों में योगाचार भूमिशास्त्र, महायानसूत्रलंकार तथा उसकी वृत्ति, सप्तदश भूमि सूत्र, महायानसंपरिग्रह शास्त्र है। इसका अनुवाद परमार्थ ने ५६३ ई. में चीनी भाषा में किया था। प्रकरण आर्यवाचा महायानाभिधर्म संगीतशास्त्र भी इन की कृति है। ये इनके प्रमुख दार्शनिक ग्रन्थ है।

योगाचारभूमिशास्त्र ग्रन्थ का योगाचार सम्प्रदाय के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। महायान सूत्रालंकार का नैतिक एवं सैद्धान्तिक दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। योगाचार भूमिशास्त्र ग्रन्थ की मूल संस्कृत के रुप में खोज महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने की थी। यह ग्रन्थ १७ भूमियों में विभक्त है और योगाचार मत के अनुसार साधन मार्ग का वर्णन करता है। महायान सूत्रालंकार असंग और उनके गुरु मैत्रेयनाथ की संयुक्त रचना है। कारिकाएँ मैत्रेयनाथ के द्वारा लिखी गई हैं और उनकी व्याख्याएँ असंग ने की है। महायान सम्परिग्रह में निम्नांकित १० पदार्थों का विवरण है-

१. आलय विज्ञान अथवा मूल विज्ञान, २. विज्ञप्तिमात्रता अथवा निःस्वभाव, ३. विज्ञप्तिमात्रता का अवबोध, ४. षड्‌पारमिताएँ ५. दस भूमियाँ ६. शील, ७. समाधि, ८. प्रज्ञा, ९. अविकल्पज्ञान, १०. त्रिकायवाद ।

असंग के अनुसार परमार्थ सत्य स्वयं प्रकाश एवं स्वभाव से ही विशुद्ध एवं निर्मल है किन्तु हमारे अन्दर अविद्या है, उसके कारण दूषित अशुद्ध प्रतीत होता है। यही चित्त धर्मधातु, बुद्धता या तथता है, इसकी अनुभूति तब होती है जब साधक दृश्य जगत एवं आत्मा को मिथ्या समझता है। ध्यान में यह अवस्था विकसित होती है कि दृश्य जगत मिथ्या है। यह कल्पनात्मक सृष्टि है, इस अवस्था में साधक का सविकल्प चित्त का भी अन्त हो जाता है, उसमें ज्ञाता एवं ज्ञेय भेद का अन्तर समाप्त हो जाता है। उसे धर्मधातु का, बुद्धता का, तथाता का दर्शन होता है जो द्वेष एवं प्रपंच से परे अनिर्वचनीय परमतत्त्व है। यह शाश्वत, नित्य, दिव्य, परमार्थ, सर्वव्यापी, दुःख निरोध एवं निर्वाण रुप है। इसका ज्ञान तो केवल आर्यज्ञान द्वारा ही सम्भव है जो ध्यान की विशुद्ध चतुर्थ भूमि पर आर्विभूत होता है।

यही असंग का विज्ञान तत्त्व है, यही बुद्ध का उपाय कौशल है जिसके द्वारा वे अन्य जनों को भी परमतत्त्व का साक्षात्कार कराते हैं। जिस प्रकार किसी बालक को अँगुली की सहायता से चन्द्रमा या सूर्य का दर्शन कराया जाता है, उसी प्रकार बुद्ध ने बाह्य वस्तुओं की सहायता से परम तत्त्व का दर्शन कराने का प्रयत्न किया है। यद्यपि बाह्य वस्तुएँ परम तत्त्व नहीं है किन्तु फिर भी उनकी सहायता से परम तत्त्व का दर्शन किया जा सकता है।

योगाचार इस शब्द के दो अर्थ हैं प्रथम अर्थ में आनुभाविक अपना बाह्य जगत की काल्पनिकता को समझने के लिए योग का अभ्यास किया जाता है। द्वितीय अर्थ में योगाचार की दो विशेषताओं को स्वीकार किया जाता है योग एवं आचार। इसका अर्थ सदाचार से लगाया जाता है। इस प्रकार योगाचारी द्वारा योगाचारों के क्रियात्मक पक्ष पर अधिक जोर....

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:उत्तरतन्त्रशास्त्रम् | Uttar Tantra Shastram
Author:Kashinath Nyaupane
Total pages:224
Language: हिंदी | Hindi
Size:82 ~ MB
Download Status:Available


Name of the Book is : Uttar Tantra Shastram | This Book is written by Kashinath Nyaupane | The size of this book is 82 MB | This Book has 224 Pages | The Download link of the book "Uttar Tantra Shastram " is given Below, you can downlaod Uttar Tantra Shastram from the below link for free.

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