Free Hindi Book Nila Saraswati Tantram In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
नीलसरस्वती देवी द्वितीया महाविद्या तारादेवी का ही रूप-विशेष हैं। एकजटा, उग्रतारा, महोग्रतारा, नीला, नीरसरस्वती आदि उन द्वितीया महाविद्या तारा के ही स्वरूपान्तर हैं। अन्तःगुप्तसाधन क्रम में जैसे सुषुम्ना ही वज्रा-चित्रा तथा ब्रह्मनाड़ी प्रभृति भेदमुख्या हो जाती है, उसी प्रकार बाह्यगुप्तसाधन क्रम में महाविद्या तारा ही आधार एवं साधन भेद से नील- सरस्वती हो जाती है। जो स्थूलतः तारा हैं, वे ही सूक्ष्मातिसूक्ष्म दृष्टिकोण का अवलम्बन लेने पर नीलसरस्वती हो जाती हैं। सूक्ष्म से सूक्ष्मातिसूक्ष्म में क्रमशः जाने पर शक्ति की केन्द्रगत स्थिति में अभिवृद्धि होती जाती है। अर्थात् अब शक्ति बहिःप्रक्षिप्त न होकर अपने केन्द्र में, अपने आप में ही अन्तर्भूत होती रहती है। शक्ति का यह रूप उसके प्रभाव को क्रमशः अधिक प्रभावशाली करता जाता है। अतः सुविज्ञजन कहते हैं कि यद्यपि नीलसरस्वती तो महाविद्या तारा का ही रूप-विशेष है, तथापि नीलसरस्वती में शक्ति का उत्कर्ष सर्वतोमुखी हो जाता है। जो साधन-मार्ग के पथिक हैं तथा जिन्हें परम्परागत क्रम से तन्त्रज्ञान प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है, वे इस तथ्य से सम्यक्तया परिचित हैं।
यह तन्त्र विष्णुक्रान्ता क्रम के चौंसठ तन्त्रों में अन्यतम है। शास्त्रों का कथन है कि चन्द्रबीज (स) का उच्चारण करके आद्य (त) को वामनेत्र (ई) तथा इन्दु () से भूषित कर उसे वह्नि (र) से संयुक्त करना चाहिए । इस प्रकार दुर्लभ 'स्त्रीं' मन्त्र का गठन होता है। यह एकाक्षरी महा- विद्या है। इसी प्रकार ईशान (ह) को वामकर्ण (ऊ) तथा बिन्दु (*) संयुक्त करने से 'हूँ' का गठन होता है। यह महाविद्या तारा का श्रेष्ठ मन्त्र है। अब शिव (ह) को वह्नि (र) तथा वामनेत्र (ई) एवं इन्दु ( ं) से भूषित करने से 'ह्रीं' मन्त्र का प्राकट्य होता है। इसमें अस्त्रमन्त्र (फट्) का योग करे। इस प्रकार 'ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्' मन्त्र प्रकट होता है, जो प्रणव लगने पर 'ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट्' रूप से उग्रतारा का श्रेष्ठ मन्त्र हो जाता है। अर्थात् एका- क्षरी महाविद्या का यह प्रक्षेपण जो उसके अपने ही केन्द्र में हो रहा है, अब उग्रतारा रूपी महास्पन्दनात्मक सूक्ष्म विमर्श का उन्मेष कराता है।
इस मन्त्र से प्रणव हटा लेने पर एकजटा की अर्चना होती है। एकजटा का यह मन्त्र महामुक्ति प्रदान करता है। यह एक रहस्यमय तथा साधक-समाज के लिए अत्यन्त उपादेय मन्त्र है। इस मन्त्र को प्रणव तथा अस्त्ररहित करने से महानीलसरस्वती का सिद्धमन्त्र (ही स्त्री हूँ) उपस्थित हो जाता है। इसमें प्रणव तथा अस्त्र अन्तर्लीन है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | नील सरस्वती तंत्रम् | Nila Saraswati Tantram |
Author: | SN Khandelwal |
Total pages: | 174 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 37 ~ MB |
Download Status: | Available |
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