Free Hindi Book Siddha Nagarjun Tantram In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
'सिद्धनागार्जुन-कक्षपुटम्' के रचयिता नागार्जुन के सम्बन्ध में अनेक मतभेद परिलक्षित होते हैं। कश्मीर के बौद्धधर्म प्रचारक राजा नागार्जुन, बोधिसत्त्व नागार्जुन, सिद्ध नागार्जुन ही नहीं, प्रत्युत जैन नागार्जुन का भी उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। परन्तु इस ग्रंथ के प्रणेता निविवाद रूप से चौरासी सिद्धों की परम्परा में अंकित तथा नाथसिद्धों द्वारा 'मान्य सिद्ध नागार्जुन ही हैं, जो बौद्ध अथवा जैन न होकर आगमिक एवं यौगिक परम्परा की मान्य- ताओं का वरण कर इस ग्रंथ के रचयिता के रूप में सदियों से प्रसिद्ध रहे हैं।
यह तथ्य ग्रंथ में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ग्रंथकार ने मंगला- चरण-प्रसंग में सर्वप्रथम 'नित्यपदार्थाश्रय' तथा 'संकल्प-संकोचक' परमशिव की वन्दना की है। ग्रंथ में सर्वत्र भैरव, शम्भुदेव तथा शिव का उल्लेख मिलता है। इन सब से यह स्पष्ट होता है कि सिद्धनागार्जुन पूर्णतः भारत की सिद्ध आगमिक परम्परा के अनुयायी रहे हैं।
ग्रंथकार एक अन्वेषक तथा संकलनकर्ता थे। यह ग्रंथ स्वतंत्र लेखन न होकर उस समय की तांत्रिक प्रक्रिया, तांत्रिकों के उपदेश, जन-जातियों तथा वनवासी लोगों में प्रचलित तांत्रिक प्रकिया, विभिन्न तांत्रिक ग्रंथों में वर्णित प्रयोग और परम्परागत प्रचलित तांत्रिक उपाय एवं जड़ी-बूटियों के मन्त्रात्मक प्रयोग का संकलन है। तन्त्र किसे कहते हैं, इसका निदर्शन वाराहीतन्त्र में विशद रूप से मिलता है। उसमें सृष्टि, प्रलय, देवपूजन, साधन-पुरश्चरण विधि, षट्कर्मसाधन तथा चतुविध ध्यानयोग का संकलन रहता है। अति उन्नत तन्त्रों में सर्ग-प्रतिसर्ग, यन्त्र-निर्णय, देवस्वरूप-संस्थान, तीर्थ-आश्रम धर्म, विप्र एवं भूत संस्थान, देवोत्पत्ति, कल्पतन्त्र, ज्योतिःसंस्थान, पुराण-आख्यान, कोषवर्णन, व्रत-शौचाचार, नरक एवं हरचक्र वर्णन, स्त्री-पुरुष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युगधर्म-व्यवहार, अध्यात्मतत्त्व अंकित रहता है। प्रथम विवरण उप- तन्त्रों का है।
द्वितीय विवरण है- तन्त्रशास्त्र का। इस कसौटी पर यह प्रस्तुत ग्रंथ उपतन्त्र तथा तन्त्र, दोनों की परिभाषा में नहीं आता। इतने पर भी इसकी उपयोगिता को अनदेखा नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह है कि इसमें तन्त्र के अतिस्थूल रूप षट्कर्म के अतिरिक्त अनेक औषधि-प्रयोग से सम्बन्धित उपाय वणित हैं, जो लोकहितकारी तथा लाभकारी हैं। इस दृष्टि से यह ग्रंथ एक उत्तम संग्रह-ग्रंथ का रूप लेता प्रतीत होता है, यह निविवाद है। ग्रंथकार प्रथम पटल में कहते हैं कि 'इस विस्तीर्ण भूमण्डल में विद्यासिद्धि के अनेक स्वरूप हैं। जैसे दूध का सार घृत है, उसी प्रकार मैंने विभिन्न तंत्र-ग्रंथ, अनुभवी तान्त्रिकों की स्वानुभूति, लोकोक्ति तथा प्रचलित मान्यताओं का मंथन करके इस क्षेत्र के सारभूत अंश को ग्रंथ में प्रस्तुत किया है।'
इस सन्दर्भ में नागार्जुन उस समय प्रचलित अनेक ग्रंथों का नामोल्लेख करते हैं। उनमें से शांभवतन्त्र, यामल, कौल, कौलेय, काकुल, शौच, राज, अमृतेश्वर, उच्छिष्ट, किंकिणी, कालचण्डेश्वर, रौद्र, अनुग्रह, निग्रह, शाल्य, हरमेखलक तथा गारुड़ तन्त्र पूर्णतः एवं अंशतः लुप्त हो चुके हैं। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि ग्रंथकार ने चार्वाक नामक आगम का भी उल्लेख किया है -
'आथर्वणे महावेदे चार्वाके गारुडेऽपि च ।
इत्येवमागमोक्तञ्च
(प्रथम पटल ९।१०)
यह आश्चर्य का विषय है !
ग्रंथकार जिन तन्त्र-ग्रंथों का उल्लेख प्रथम पटल में करते हैं, उस काल में इनके अतिरिक्त भी अनेक तन्त्र प्रचलित थे, तथापि उनका लेखन नहीं हुआ था । वे परम्परागत रूप से गुरु द्वारा शिष्य को सुनाये जाते थे। ग्रंथकार ने उनका भी अध्ययन किया था। इसके लिए उन्होंने कोई एक निश्चित गुरु की शरण न लेकर अनेक गुरुओं का आश्रय लिया। यही कारण है कि वे किसी एक निश्चित गुरु की वन्दना न करके, विशुद्ध आगमिक परम्परा का आश्रय लेकर परमगुरु (गुरुओं के गुरु परमशिव) की वन्दना करते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | सिद्ध नागार्जुन तंत्रम् | Siddha Nagarjun Tantram |
Author: | S.N Khandelwal |
Total pages: | 206 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 85 ~ MB |
Download Status: | Available |
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