तंत्र के दिव्य प्रयोग | TANTRA KE DIVYA PRAYOG PDF FREE DOWNLOAD

Tantra Ke Divya Prayog Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

अनन्त जन्मों से एक खोज चलती रही है अपने को पहचानने की, स्वयं को जानने की, क्योंकि स्वयं को जानकर ही उस मूल स्रोत तक पहुंचा जा सकता है, उस स्त्रोत को ज्ञात किया जा सकता है, जहां से जीवन का अवतरण होता है। जीवन को जानकर ही जीवन से संबंधित उन मूल समस्याओं के कारणों को जाना जा सकता है, जो हमें पीड़ा, कष्ट पहुंचाते हैं। समय-असमय प्रकट होकर यह समस्यायें नाना प्रकार के दुःख-दर्द देती रहती हैं। जीवन के सत्य को जानकर ही उस शाश्वत एवं दिव्य आनन्द को प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी दिव्य अनुभूतियां कभी समाप्त नहीं होती हैं।

और स्वयं को जानने का क्या अभिप्राय है? जीवन के गूढ़तम रहस्य को जानना, इस विश्व एवं ब्रह्माण्ड को समझना, प्राकृतिक रहस्यों को आत्मसात करना, यही खोज प्राचीनकाल से आज तक चली आ रही है और यह खोज अनन्तकाल तक इसी प्रकार चलती रहेगी।

मनुष्य की इस खोज के अनेक मार्ग रहे हैं। इसका एक मार्ग बाह्य विज्ञान पर आधारित रहा है, जबकि इसका दूसरा मार्ग आत्मदर्शन और स्वयं के अन्तस में गहराई से प्रवेश करने का रहा है। इन दोनों ही मार्गों की अपनी-अपनी उपयोगिताएं और अपनी-अपनी सीमाएं हैं। वैज्ञानिक मार्ग ने जीवन के अनेक रहस्यों से पर्दा अवश्य उठाया है, किन्तु इस मार्ग की सीमाएं केवल वहां तक पहुंचती हैं जहां तक प्रकृति की सीमाएं हैं। प्रकृति की सीमा से परे विज्ञान की पहुंच समाप्त हो जाती है क्योंकि वैज्ञानिकों की खोज, उनकी साधना का माध्यम वही साधन बनते हैं, जो स्वयं ही प्रकृति द्वारा निर्मित किये जाते हैं। अतः वैज्ञानिकों की खोज एक सीमा पर जाकर रुक जाती है।

विज्ञान के विपरीत आत्मदर्शन की खोज वहां से शुरू होती है जहां से प्रकृति की सीमा समाप्त हो जाती है और पराभौतिक जगत की शुरूआत होती है। आत्मदर्शन की साधना में प्रकृति प्रधान वस्तु ज्यादा सहायक सिद्ध नहीं होती। इस साधना में पंचतत्त्व निर्मित साधक का शरीर एक आधार भर ही होता है। इस मार्ग की शुरूआत स्थूल से परे आत्मिक शरीर से होती है जिसकी चेतना का संबंध सम्पूर्ण पराभौतिक जगत एवं परमात्मा तक के साथ सदैव रहता है, लेकिन यह मार्ग वैज्ञानिक मार्ग के मुकाबले ज्यादा दुष्कर, कठिन एवं जोखिम पूर्ण है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:तंत्र के दिव्य प्रयोग | Tantra Ke Divya Prayog
Author:R. Krishna
Total pages:196
Language: हिंदी | Hindi
Size:41 ~ MB
Download Status:Available


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