योग तांत्रिक साधना प्रसंग | YOGA TANTRIK SADHANA PRASANG PDF FREE DOWNLOAD

Yoga Tantrik Sadhana Prasang Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

योग और तंत्र दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। योग के बिना तंत्र की और तंत्र के बिना योग की साधना अपूर्ण बतलायी गयी है। भारतीय संस्कृति में सोलह प्रकार की उपासनाएं हैं लेकिन साधना दो ही हैं पहली है योग साधना और दूसरी है तंत्र साधना और इन दोनों का मूल स्रोत वेद है। वेद ज्ञान है साधना नहीं। वैदिक साधना का अर्थ ही है योग साधना और तंत्र साधना। योग और तंत्र दोनों भगवान शंकर द्वारा प्रणीत है। योगियों में उन्हें परमयोगी के रूप में स्वीकार किया गया है।

मुख्य रूप से शरीर में तीन दोष हैं- शरीर दोष, वाणी दोष और चित्त दोष। विविध प्रकार के रोग, शरीर दोष हैं। शब्दों और अक्षरों का त्रुटिपूर्ण और अशुद्ध उच्चारण वाणी दोष है। क्रोध, ईर्ष्या, कपट, असत्य भाषण, दुर्वचन, द्वेष आदि चित्त दोष है। इन तीनों दोषों से जो मुक्त है वह पूजनीय और महापुरुष है और है परम सत्ता के निकट।

आदिकाल में उपर्युक्त दोषों को दूर करने के लिए मानव कल्याणार्थ भगवान शेषनाग ने महर्षि चरक के रूप में अवतरित होकर चरक संहिता की रचना की। पतञ्जलि के रूप में अवतरित होकर व्याकरण की रचना की और योग दर्शन की। ये तीनों साधन समस्त मानव जाति के लिए हैं। किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं। धर्म से भी इनका कोई संबंध नहीं। यदि संबंध है भी तो केवल अध्यात्म से मात्र।

यहां यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि महामुनि पतञ्जलि द्वारा रचित योग दर्शन में केवल योग के प्रारम्भिक आठ अंगों का ही दिग्दर्शन है। जिनमें पांच अंग बहिरंग हैं और शेष तीन अंग अन्तरंग हैं। योग दर्शन की अन्तिम उपलब्धि निर्विकल्प समाधि है। मेरे विचार से सम्भवतः भगवान शेषनाग ने चित्त दोष के निवारण के लिए इतना ही पर्याप्त समझा हो। लेकिन एक बात यहां कह देना आवश्यक है कि योग एक गहन, गम्भीर और अथाह सागर के समान है। जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गीतोपदेश द्वारा १८ अध्यायों में विभक्त कर दिया है। जो श्रीमद्भगवद्गीता के रूप में भारतीय अध्यात्म जगत की अमूल्य सम्पत्ति है इसमें सन्देह नहीं।

जैसाकि पूर्व में संकेत किया जा चुका है आप किसी भी जाति और धर्म के हों। आपका जन्म किसी भी देश में हुआ हो। आपका कोई भी नाम हो। यदि आप राग, द्वेष, क्रोध, घृणा, कपट आदि से परे हैं तो योग आपको प्रणाम करता है। आप महान हैं और योगियों के भी योगी हैं। कतिपय लोगों की धारणा है कि योग से सरल भक्ति है।

भक्ति द्वारा परमात्मा को उपलब्ध हुआ जा सकता है। ऐसे लोगों का यह है कि योग से भक्ति सरल है जबकि वर्तमान में योगाभ्यास सभी के लिए नहीं है और सभी उसके योग्य भी नहीं है। इस संबंध में तो हम इतना ही जिसको भक्ति सरल और सुगम लगती हो उसमें रस मिलता हो वह उसे नि स्वीकार कर सकता है किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं। इस प्रसंग में यह लेना चाहिए कि 'योग' का अर्थ अति व्यापक है। भगवान शेषनाग द्वारा योग अंगों में प्रस्तुत कर देने से उसकी व्यापकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। स देश काल पात्र को देखते हुए भगवान शेषनाग ने योग के आठ अंगों को ही प्रक हो। इससे अधिक की आवश्यकता न समझी हो। अष्टांग योग में चित्त को पहन दिया गया है।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:योग तांत्रिक साधना प्रसंग | Yoga Tantrik Sadhana Prasang
Author:Arun Kumar Sharma
Total pages:399
Language: हिंदी | Hindi
Size:63 ~ MB
Download Status:Available


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