Free Hindi Book Aapko Apne Jeevan Mein Kya Karna Hai In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
जिस तरीके से आप और मैं अपने-अपने मस्तिष्क से जुड़े हैं, आपस में जुड़े हैं, निजी आधिपत्य की अपनी वस्तुओं से जुड़े हैं, धन, कर्म और सेक्स से जुड़े हैं-यह जुड़ाव, यह सन्निकट संबंध ही समाज का निर्माण करते हैं। स्वयं अपने से संबंध और पारस्परिक संबंधों को छह अरब से गुणा कर देते ही यह संसार बन जाता है। हम ही संसार हैं- हममें से प्रत्येक के पूर्वाग्रहों का संचयन, हममें से प्रत्येक के पृथक अकेलेपन का एकत्रीकरण, प्रत्येक की लोभी महत्त्वाकांक्षा, प्रत्येक की शारीरिक और भावनात्मक भूख, हममें से प्रत्येक में विद्यमान क्रोध और उदासी- यही हम हैं और यही संसार।
संसार हमसे कुछ भिन्न नहीं है। हम ही संसार हैं, तो सीधी-सी बात है कि यदि हम बदलें, हममें से प्रत्येक स्वयं में परिवर्तन करे, तो हम संसार को परिवर्तित कर सकते हैं। यदि हममें से केवल एक भी परिवर्तित होता है तो समाज में कुछ छिड़ता है। भलाई दूसरों को छूती है, फैलती है।
स्कूल में हमें अपने अभिभावकों व अध्यापकों को सुनना सिखाया जाता है। तकनीकी तौर पर यह सार्थक है, परंतु मनोवैज्ञानिक तौर पर हज़ारों पीढ़ियों बाद भी हम यह नहीं सीख पाये हैं कि स्वयं दुखी होना और दूसरों को दुख देना- इसे कैसे रोका जाये। अपने भौतिक और वैज्ञानिक विकास के अनुपात में मनोवैज्ञानिक विकास हम नहीं कर पाये हैं। स्कूल में हम सब यह तो सीख सकते हैं कि जीवन-यापन कैसे किया जाए, परंतु जिया कैसे जाए-यह तो हर एक को स्वयं ही सीखना होता है।
यह जीवन हम सभी को बहुत आहत करता है- अकेलेपन द्वारा, भ्रम, असफलता की अनुभूति और हताशा द्वारा। यह हमें निर्धन और भावनात्मक रूप से रुग्ण होने के द्वारा, घर और बाहर व्याप्त हिंसा द्वारा आहत करता रहता है। हमें अनेकानेक बातें सिखाई जाती हैं परंतु जीवन के आघातों से निपटना शायद ही सिखाया जाता हो। एक बात जो हमें नहीं सिखाई जाती वह है कि यह जीवन नहीं, अपितु हमारे साथ जो कुछ घटित होता है उसके प्रति हमारी प्रतिक्रिया ही है जो हमारे विषाद का कारण बनती है। शरीर की सुरक्षा तो नैसर्गिक है परंतु क्या उसे भी सुरक्षा देना नैसर्गिक है जिसे हम 'अहं' कहते हैं? यह अहं, यह स्व है क्या चीज़ जो हमारे सभी दुख-क्लेशों का मूल है, उस मानसिक पीड़ा का मूल है जो इसकी संरक्षा करते हुए हम महसूस करते हैं?
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | आपको अपने जीवन में क्या करना है | Aapko Apne Jeevan Mein Kya Karna Hai |
Author: | J Krishnamurti |
Total pages: | 211 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 2.5 ~ MB |
Download Status: | Available |
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