Free Hindi Book Brahmacharya Gourav In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
ब्रह्मचर्य जीवन का सार एवं तत्त्व है। दूध में घी का जो स्थान है, तिल में तेल का जो महत्त्व है, गन्ने में रस का जो स्थान है, शरीर में वीर्य का भी वही महत्त्व एवं स्थान है, अतः जिस प्रकार एक जौहरी अपने मूल्यवान् हीरों की रक्षा और देखभाल करता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को हीरे और मणियों से भो मूल्यवान् अपने वीर्य की सम्भाल - रक्षा करनी चाहिए ।
निष्ठापूर्वक ब्रह्मचर्य के पालन से पुट्ठे दृढ़ बनते हैं, स्नायुओं में बल और शक्ति आती है, शारीरिक, बौद्धिक और आत्मिक गुणों का विकास होकर जीवन में नव-यौवन, नव-ज्योति एवं नव-चेतना का संचार होता है। शरीर तेजोमय बन जाता है; जीवन आनन्दमय हो जाता है। मुखमण्डल पर अलौकिक आभा, ओज और तेज दृष्टिगोचर होने लगता है। स्मरण-शक्ति भी विलक्षण हो जाती है। १८-२० वर्ष के युवकों के मुखमण्डल पर एक विशेष आभा होती है। हमने देखा है कि काले व्यक्ति के चेहरे पर भी गुलाबी छटा छा जाती है।
संसार में सबसे भयंकर वस्तु क्या है? संसार में ऐसी कौन-सी वस्तु है जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े योद्धा भी भयभीत होकर काँपने और थरीने लगते हैं? उत्तर है मृत्यु । इस मृत्यु का नाम सुनकर विश्वविजेता नेपोलियन बोनापार्ट काँप उठता था । मृत्यु को अपने समक्ष उपस्थित देखकर महमूद गजनवी का हृदय दहल गया था। मृत्यु का समय निकट जानकर सिकन्दर महान् के छक्के छूट गये थे। परन्तु मृत्यु ब्रह्मचारी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। ब्रह्मचारी हँसते और मुस्कराते हुए मृत्यु का आलिंगन करता है। सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को जब फाँसी दी जाने लगी तो उनसे पूछा गया - "आपकी अन्तिम इच्छा क्या है ?" उन्होंने निर्भयतापूर्वक उत्तर दिया -"I wish the downfall of British Empire." मैं अंग्रेजी राज्य का सर्वनाश चाहता हूँ यही मेरी अन्तिम इच्छा है।" यह कह-कर उन्होंने हँसते और मुस्कराते हुए फाँसी के फन्दे को अपने गले में डाल लिया ।
वैदिक धर्मोद्धारक, क्रान्ति के अग्रदूत, आदित्य ब्रह्मचारी महर्षि दयानन्द के पावन चरित्र को कौन नहीं जानता ! जीवन के अन्तिम समय में महर्षि को कालकूट विष दिया गया। वह विष इतना घातक एवं भयंकर था कि किसी साधारण व्यक्ति को दिया जाता तो एक या दो मिनट में ही उसका प्राणान्त हो जाता, परन्तु वाह रे महर्षि ! आप उस हलाहल विष का पान करके भी एक मास तक शरीर धारण किये रहे। महर्षि के शरीर के अंगों से ही नहीं, रोम-रोम से विष फूट निकला था, आँखों की पुतलियों तक पर छाले हो गये थे। जो उन्हें देखते थे उनकी सहन-शक्ति की सराहना करते थे। अत्यन्त भयंकर वेदना होते हुए भी महर्षि मुख से आह तक नहीं निकालते थे। मृत्यु गाती श्री ने ऐसेर धकेल देते थे।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | ब्रह्मचर्य गौरव | Brahmacharya Gourav |
Author: | Swami Jagdishwaranand Sarswati |
Total pages: | 83 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 26 ~ MB |
Download Status: | Available |
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