Free Hindi Book Chankaya Neeti In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम्। नाना शास्त्रोद्धृतं वक्ष्ये राजनीति समुच्चयम् ।।1।।
तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) के स्वामी भगवान विष्णु के चरणों में शीश नवाकर प्रणाम करके अनेक शास्त्रों से उद्धृत राजनीति के संकलन का वर्णन करता हूं।
चाणक्य यहां राजनीति सम्बन्धी विचारों के प्रतिपादन के समय कार्य के निर्विघ्न समाप्ति के भाव से कहते हैं कि मैं कौटिल्य सबसे पहले तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को सिर नवाकर प्रणाम करता हूं। इस पुस्तक में मैंने अनेक शास्त्रों से चुन-चुनकर राजनीति की बातें एकत्रित की हैं। यहां मैं इन्हीं का वर्णन करता हूं।
चाणक्य (विष्णुगुप्त) के लिए कौटिल्य का सम्बोधन इनके कूटनीति में प्रवीण होने के कारण प्रयोग किया है। यह एक तथ्य है कि चाणक्य की नीति राजा एवं प्रजा, दोनों के लिए ही प्रयोग किए जाने के लिए थी। राजा के द्वारा निर्वाह किए जानेवाला प्रजा के प्रति धर्म ही राज धर्म कहा गया है और प्रजा द्वारा राजा अथवा राष्ट्र के प्रति निर्वाह किया धर्म ही प्रजा धर्म कहा गया। इस धर्म का उपदेश ही नीतिवचन के रूप में निर्विघ्न पूर्ण हो, इसी आशय से प्रारम्भ में मंगलाचरण के रूप में विष्णु की आराधना से कार्यारम्भ किया गया है।
अच्छा मनुष्य कौन
अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः। धर्मोपदेशविश्यातं कार्याऽकार्याशुभाशुभम् ।।2।।
धर्म का उपदेश देने वाले, कार्य-अकार्य, शुभ-अशुभ को बताने वाले इस नीतिशास्त्र को पढ़कर जो सही रूप में इसे जानता है, वही श्रेष्ठ मनुष्य है।
इस नीतिशास्त्र में धर्म की व्याख्या करते हुए क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए; क्या अच्छा है, क्या बुरा है इत्यादि ज्ञान का वर्णन किया गया है। इसका अध्ययन करके इसे अपने जीवन में उतारनेवाला मनुष्य ही श्रेष्ठ मनुष्य है।
आचार्य विष्णुगुप्त (चाणक्य) का यहां कहना है कि ज्ञानी व्यक्ति नीतिशास्त्र को पढ़कर जान लेता है कि उसके लिए करणीय क्या है और न करने योग्य क्या है। साथ ही उसे कर्म के भले-बुरे के बारे में भी ज्ञान हो जाता है। कर्तव्य के प्रति व्यक्ति द्वारा ज्ञान से अर्जित यह दृष्टि ही धर्मोपदेश का मुख्य सरोकार और प्रयोजन है। कार्य के प्रति व्यक्ति का धर्म ही व्यक्ति धर्म (मानव धर्म) कहलाता है अर्थात मनुष्य अथवा किसी वस्तु का गुण और स्वभाव जैसे अग्नि का धर्म जलाना और पानी का धर्म बुझाना है उसी प्रकार राजनीति में भी कुछ कर्म धर्मानुकूल होते हैं और बहुत कुछ धर्म के विरुद्ध होते हैं।
गीता में कृष्ण ने युद्ध में अर्जुन को क्षत्रिय का धर्म इसी अर्थ में बताया था कि रणभूमि में सम्मुख शत्रु को सामने पाकर युद्ध ही क्षत्रिय का एकमात्र धर्म होता है। युद्ध से पलायन या विमुख होना कायरता कहलाती है। इसी अर्थ में आचार्य चाणक्य धर्म को ज्ञानसम्मत मानते हैं।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | चाणक्य नीति | Chankaya Neeti |
Author: | Ashwani Prashar |
Total pages: | 232 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 13 ~ MB |
Download Status: | Available |
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