Free Hindi Book Mein Harunga Nahi In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
सर्वबाधाप्रशमनं त्रैलोक्स्याखिलेश्वरी l
एवमेव त्वया कार्यस्मद्वैरिविनाशनम् ll
"सॉरी मम्मा मैं आपसे दो दिन से बात नहीं कर पाई हु"।
"बेटा आप तो दिल्ली गई हैं आपका काम अच्छी तरह होगया"।
"नहीं मम्मा मैं दिल्ली जा ही नहीं पाई रास्ते से ही वापस आना परा, वैसे काम होगया मेरा" ।
"लेकिन आप आधे रास्ते से वापस क्यों आगई, सब ठीक तो है न वहा" ?
"अरे मम्मा यहाँ सब ठीक है, लेकिन मैं आपको बताऊंगी जब आप मुझसे वादा करेंगी मेरी बात सुनकर आप परेशान नहीं होंगी" ।
"ठीक है मैं वादा करती हु मैं परेशान नहीं होउंगी" l
"मम्मा मैं जब दिल्ली जाने के लिए ट्रेन पे चड़ी। ट्रेन की डब्बे में चढ़ने उतरने वाले लोगो की कुछ ज्यादा ही भीर थी। किसी तरह उन भीर में जगह बनाते हुए मैं आगे बढती हुए अपनी सिट के पास आई, लेकिन ये देख हैरान हो गई की मेरे सिट पर दो पहलवान जैसे बन्दे अपने पैर फैलाए बैठे है। मैंने बरे ही नर्म लहजे में उनसे कहा भाई साहब ये मेरी सिट है आप अपनी सिट पर जाकर बैठे। मेरी बात सुन वो दोनों मुझे घर कर देखे फिर थोरा खिसक कर बोले बैठो। उनकी हरकत देख मैंने अपनी जुबान में सख्ती लाते हुए कहा "लगता है आपने सूना नहीं ये मेरी सिट है, आप अपने सिट पर जाकर बैठे" l मेरी बात सुनकर उनमे से एक ने कहा तुम्हे बैठने के लिए कितनी जगह चाहिए। यह बात सुन दूसरा पहलवान हंसने लगा। एक तो गर्मी ऊपर से इनकी बत्तमीजी मुझे थोड़ा गुस्सा आया मेरा उनलोगों से उलझने का थोड़ा भी मन नहीं था, पर वो कुछ सुनने को तैयार नहीं हो रहे थे। फिर मैंने अपने हैंडबैग से अपना सेल फोन निकालते हुए कहा, भाई साहब मैं अब आपसे आखिरी बार पूछ रही हूँ आप हटेंगे या मैं पुलिस को फ़ोन करू। मेरी इतनी बात सुन वो दोनों मेरी सिट से उठे और मेरी तरफ घूरकर देखते हुए वहा से चले गए। मैंने अपना सामान अपने सिट के पास रखा फिर सिट पर बैठ गई और अपने पर्स से पानी की बोतल निकाल पानी पिने लगी। मैं पानी पी ही रही थी की मेरी नजर दूसरें कम्पार्टमेंट में बैठी एक लड़की पर पड़ी जो कब से मेरी तरफ देख रही थी मैं बोतल का ढक्कन बंद कर उसे साइड में रखकर बाहर की तरफ देखने लगी, तभी मेरे सामने वाले सिट पर एक परिवार आकर बैठे। मैं उन्हें देख मुस्कुरा कर बोली क्या आप भी दिल्ली जा रही है। वो लेडिज मेरी तरफ मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दी। वो लोग सिट पर बैठ गये। पति पत्नी एक दस साल की बेटी, बेटी मुझसे बाते करने लगी। "आंटी क्या आप अकेले जारही है" ? मैंने कहा "हाँ मैं अकेले जारही हु" । तो वह बोली "आपको डर नहीं लगता है ऐसे जाने में"।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मैं हारूंगा नहीं | Mein Harunga Nahi |
Author: | Alka |
Total pages: | 115 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.4 ~ MB |
Download Status: | Available |
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