Free Hindi Book Paratantra Sadhana Path In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
ज्ञानगंज के सिद्ध योगी श्री विशुद्धानंद परमहंस देव जीष के उपासक हैं। वे विशुद्ध सत्ता के रूप में चैतन्य सत्ता से भी अतीत हैं, जो आलोक एवं अन्धकार दोनों के अतीत उपस्थित होकर आलोक एवं अन्धकार की समष्टि द्वारा जीव को पूर्णत्व प्राप्ति का पथ प्रदर्शन कराने के लिये मृत्युलोक में अवतरित हुये थे। उनको अवधारणा थी कि मनुष्य देह में जब तक मनुष्यत्व की प्राप्ति नहीं होगी, तब तक पूर्ण ब्रह्म-अवस्था की प्राप्ति असम्भव है। देवता अथवा ईश्वर की समकक्षता पाना मनुष्य का उद्देश्य नहीं है। बाबा ने नर देह में अवस्थित हो, चिरकाल तक साधना की। उनका लक्ष्य था किस प्रकार नर देह मृत्यु वर्जित होकर, चिदानन्दमय नित्य देह में परिणत हो सके। उन्होंने मनुष्य की साधना की, अतः उनके लिए मनुष्यत्व साध्य था। बाबा जीव के उपासक थे अतएव जीवों का अभाव तथा अतृप्ति से उद्धार करना ही उनका एक मात्र उद्देश्य था और महाप्रलय तक रहेगा।
स्वनामधन्य विश्वविश्रुत मनीषी पं० गोपीनाथ कविराज को बाबा विशुद्धानंद का अन्यतम शिष्यत्व प्राप्त हुआ। बाथा द्वारा प्रतिपादित सेवा और कर्म द्वारा विज्ञान के अन्वेषण कार्य में अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। (देखिये 'योग तन्व साधना' पुस्तक का परिशिष्ट) गहन गम्भीर साधना के फलस्वरूप उनमें उद्भट पाण्डित्य प्रकाशित हुआ। कर्म, ज्ञान और भक्ति की त्रिवेणी का अजल स्रोत बढ़कर विश्वव्यापी हुआ। उनकी लेखनी को विश्व में व्याप्त लगभग सभी उल्लेखनीय साधना पद्धतियों एवं उनमें निहित सूक्ष्म भावों को प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त है। यह उत्कृष्ट ज्ञान अनुभव सिद्ध था। अतः इसका समन्वयात्मक स्वरूप साधकों का पथ प्रदर्शित करता है। पूज्य बाबा द्वारा प्राप्त परातन्व धारा की 'आत्म क्रिया योग' पद्धति का कविराज जी ने अपने गम्भीर चिन्तन तथा तीव्र साधना से अत्यधिक परिष्कृत, वैज्ञानिक एवं सहज बनाया।
सर्वमुक्ति के प्रथम प्रेरक महात्मा बुद्ध की परम्परा में प्रभुपाद जगद् बन्धु, वामाक्षेपा आदि थे। बीसवीं शताब्दी में समसामयिक अवतार मेहेर बाबा, श्री अरविन्द तथा कविराज गोपीनाथ का इस दिशा में उल्लेखनीय योगदान है। इसे हम आध्यात्मिक क्रान्ति का युग कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। बाबा द्वारा प्रतिपादित आध्यात्मिक सम्पदा को 'अखण्ड महायोग' नाम देकर श्री कविराज जी ने इसे मुखरित किया जिससे जीव जगत् को इससे परिचय मिल सका। यह अखण्ड महायोग आलोक, अन्धकार व मन से समझा जाता है। व्यष्टि मन का आयत्त है जो कभी अन्धकार व कभी प्रकाश में रहता है। समस्या है समष्टि मन के आयत्त होने की। समष्टि प्राण आयत्त है। काया जीव व मन से सम्बद्ध है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | परातन्त्र साधना पथ | Paratantra Sadhana Path |
Author: | Gopinath Kaviraj |
Total pages: | 95 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 37 ~ MB |
Download Status: | Available |
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