स्वप्न दोष चिकित्सा | SWAPNA DOSHA CHIKITSA HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Swapna Dosha Chikitsa Hindi Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

अर्धनिद्रा में मनुष्य अनेक प्रकार के स्वप्न देखता है। जैसे संरकार और विचार होते हैं, वैसे ही रात्रि में स्वप्न आते हैं। हमारे माता-पिता आदि पूर्वजों ने हमारे उत्पन्न करने के लिये कोई तैयारी नहीं की। लगभग सभी गृहस्थ कामवासना में अन्धे होकर व्यभिचार करते हैं। इसी पाप के फलस्वरूप हमारी उत्पत्ति होती है। यों कहिए हम विषयभोगों के कीड़े मकोड़े अपने पूर्वजों के गन्दे संस्कारों का भार सिर पर लादकर गर्भ से बाहर आते हैं और पैदा होने के पीछे न हमें ब्रह्मचर्य की शिक्षा मिलती है और न ही हमारे पालन-पोषण में स्वास्थ्य के नियमों का ध्यान रखा जाता है। सबके पेट उष्ण, उत्तेजक व वीर्यनाशक पदार्थों से ढूंस-टूसंकर भर दिएजाते हैं। हम चरित्रहीन नीच साथियों के साल खुलेरूप से खेलते-कूदते हैं। हमें कोई रोकने-टोकनेवाला नहीं होता।

ब्रह्मचर्य का कौनसा नियम है जिसको हमारे देश के बालक गिन-गिनकर जानबूझकर प्रतिदिन तोड़ते न हों। इस कारण जानबूझकर जागृत अवस्था में तथा विन जाने स्वप्न-अवस्था में वीर्यनाश करते हैं। नींद में गन्दे स्वप्न आकर वा बिना स्वप्नदोष भी वीर्यपात (वीर्य का निकल जाना) स्वप्नदोष कहलाता है। यह भयङ्कर रोग है, हजारों में एकाध सौभाग्यशाली युवक वा विद्यार्थी होगा जो इससे बचा हुआ हो, आज सारा संसार इससे दुःखी है। यह सब हमारे पापों का ही फल है, इसलिए बिना इच्छा के भी होता रहता है। कई बार तो मनुष्य इसको दूर करने के लिये घोर पुरुषार्थ और यत्न करता है और यह फिर भी होजाता है। कितने ही ब्रह्मचर्यप्रेमी युवक और विद्यार्थी इसी रोग के कारण महादुःखी और निराश दिखाई देते हैं। कितने ही स्वप्नदोष के रोगियों के पत्र मेरे पास आते रहते हैं। एक विद्यार्थी के एक पत्र का कुछ भाग नीचे देता हूँ-

हमारे विद्यालय में आपने ब्रह्मचर्य के बारे में व्याख्यान दिया। आपकी बातों का मेरे ऊपर काफी असर पड़ा। मैंने भी कुछ प्रतिज्ञायें कीं। किन्तु आज तक मैं अपनी प्रतिज्ञा में पास नहीं हुआ। जिसने मुझे पास नहीं होने दिया वह चीज मेरे वीर्य का बाहर निकल जाना है। मैंने इसको रोकने के लिये हजार कोशिश की, किन्तु सब फेल हुई। एक वैद्य ने मुझे कई प्रकार की दवाई दी किन्तु कोई असर नहीं हुआ। बहुत दिन तक आसन और प्राणायाम किये। किन्तु अपनी प्रतिज्ञा में असफल हुआ। मैं सन्ध्या और हवन भी काफी करता हूं और मन को भी काफी शुद्ध किया। जब मैं जागता हूं तो मन ठीक रहता है किन्तु स्वप्न में खराब होजाता है। कई बार तो वीर्य निकल जाता है, तो मरने को जी चाहता है। श्रीमान् जी आपका अहसान मेरे से कभी भूला नहीं जासकता यदि आप मुझको इस बीमारी से बचादें। श्रीमान् जी की बड़ी कृपा होगी।

इस रोग को दूर करने के उपायों पर कभी विस्तारपूर्वक लिखा जावेगा। किन्तु अब तो संक्षेप से लिखने के लिये विवश हूं। जिन कारणों और भूलों से स्वप्रदोष का भयंकर रोग आ चिपटता है, उनको दूर करदो, यह स्वयं भाग जायेगा। इसको लोग जितना भयंकर समझते हैं यह उतना भयानक नहीं। कुछ उपाय तथा नियम हैं। यदि इनका सावधानी से पालन किया जाये तो जीवनभर कभी भी स्वप्रदोष नहीं होसकता। हमने इन्हें कितने ही युवकों और विद्यार्थियों पर बार-बार अनुभव किया वा आजमाया है, जिसने जितनी सावधानी और तत्परता से इन नियमों का पालन किया उसको उतनी ही सफलता मिली। कई बार तो छोटी छोटी भूलों से ही युवकों को स्वप्नदोष होता रहता है।

इस रोग को दूर करने के उपाय और चिकित्साः-१. दुष्टविचारों का परित्याग मनुष्य का मन चित्र खींचनेवाले कैमरे के समान है। जो भी वस्तु चित्र खाँचते समय कैमरे के सामने आता है उसी का चित्र खिंच जाता है। यही अवस्था मन को है। जैसी बातें मनुष्य कानों से सुनता तथा मुख से कहता और जैसे कार्य आँखों से देखता वा अन्य इन्द्रियों वा शरीर से करता है, वैसे ही चित्र हमारा मनरूपो कैमरा खींचता रहता है। हमारी प्रत्येक क्रिया व विचार की छाप हमारे मन पर लगती रहती है। जैसे फोटोग्राफर अनेक प्रकार के चित्रों की प्लेट्स (छापें) एकत्रित (इकट्ठी) करता है, उसी प्रकार मनुष्य भी जैसे-जैसे कार्य करता रहता है वैत्तों-वैसी प्लेट्स (चित्र) हमारा मन भी संग्रह करता रहता है और हमें पता भी नहीं चलता। जब हमारा मन जागृत वा स्वप्न-अवस्था में कार्यरहित (खाली) रहता है तो फिर उन्हों संग्रह किए हुए चित्रों की देख पड़ताल करता है। हम सारे दिन अप्रैल (गन्दै) विचारों में डूबे रहते हैं। अतः हमें स्वप्र भी गन्दे ही आते हैं। जागते हुए मुख से कहा वा कानों से सुना हुआ एक अभील (गन्दा) शब्द भी अनेक अपवित्र संस्कारों की याद दिलाता है और हमारे नाश का कारण बनता है।

त्रिषपाठक। मुझे क्षमा करें। मैं पूछता हूँ कि क्या कभी आपको मूत्र (पेशाब) पीने व मल (पाखाना) खाने का स्वप्र भी आया है? आप सबका उत्तर यही होगा कि नहीं, कभी नहीं। कारण मूत्र पीने व मल खाने की बत्तु नहीं ।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:स्वप्न दोष चिकित्सा | Swapna Dosha Chikitsa
Author:Swami Omanand Saraswati
Total pages:14
Language: हिंदी | Hindi
Size:22 ~ MB
Download Status:Available


Name of the Book is : Swapna Dosha Chikitsa | This Book is written by Swami Omanand Saraswati | The size of this book is 22 MB | This Book has 14 Pages | The Download link of the book "Swapna Dosha Chikitsa " is given Below, you can downlaod Swapna Dosha Chikitsa from the below link for free.

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