अनंत की ओर | ANANT KI AUR HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Anant Ki Aur Hindi Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

स्वनामधन्य महामहोपाध्याय डॉ० पं० गोपीनाथ कविराज के स्वानुभूत अध्यात्म पथ का जो वर्णन उनकी लेखनी द्वारा यत्र-तत्र व्यक्त किया गया था, उसी का संग्रहात्मक प्रयास हिन्दीभाषा के जिज्ञासुओं की सुविधा के लिए प्रस्तुत किया गया है। मुझे बीस वर्षों तक इन महापुरुष के दर्शन का सौभाग्य इनकी कृपा तथा प्राक्तन कर्मों के फलस्वरूप मिलता रहता था। इनके ही सान्निध्य में आते-जाते रहने के कारण महान् साधक चन्द्रशेखर स्वामी हिरेमठ, डॉ० हरिश्चन्द्र शुक्ल, महान् तांत्रिक डॉ० ब्रजगोपाल भादुड़ी, शिवकल्प योगी, आचार्य रामेश्वर झा, गोपाल शास्त्री 'दर्शनकेशरी', दादा सीतारामजी, ठाकुर जयदेव सिंह आदि महान् विद्वानों से भी वहीं सम्पर्क हो सका था। यह इन महान् मनीषी की ही कृपा थी कि वहाँ कितने अनजाने विद्वानों से परिचय हो सका। न जाने कितने ग्रन्थों का आश्रय मिला, जो निकट बन्धु थे, सम्बन्धी थे, तथापि परमार्थपथिक नहीं थे, उनसे मैं दूर होता गया तथा जो पराये थे तथापि इस अगम पथ के पथिक थे, वे ही मेरे चिरबन्धु हो गये। यही सत्संग का चमत्कार है।

यह सत्संग मैंने जिस रूप में पाया था, भले ही उस रूप में अब उपलब्ध नहीं है, तथापि उन महापुरुष को साहित्यरूपी जो कृतित्व उपलब्ध हो रहा है, वह मूर्तरूप धारण करके अर्थात् वाङ्मयरूप में सतत विद्यमान है। इसका पठन-चिन्तन तथा अनुशीलन भी उनका ही सत्संग है। इस वाङ्मयरूप के विद्यमान रहने के कारण उन महामनीषी का अभाव भी उतना नहीं खटकता। इस रूप में उन्होंने यथार्थ जिज्ञासुओं के लिए मानो एक सम्बल तथा पथप्रदीप तो छोड़ दिया है। यही उनकी यशः काया है, जो काल के कराल झंझावात में भी यथावत् विद्यमान है।

यहाँ महापुरुष के वाक् तथा अर्थ की अलौकिकता का भी सन्धान प्राप्त होता है। भवभूति कहते हैं जो लौकिक साधु हैं वे वाक् के अर्थ का अनुसरण करते हैं, उसे खोजते दौड़ते हैं, परन्तु जो ऋषि हैं अर्थ तो उनके पीछे दौड़ता रहता है। उनकी वाणी का अर्थ ढूँढ़ना नहीं पड़ता, उस वाणी के पठन-मात्र से जो जैसा अधिकारी है, उसके अधिकार के अनुसार, उसके स्तर के अनुसार, उस वाणी का अर्थ प्रतिभात होने लगता है अर्थात् एक ही वाणी का अर्थ पाठक के अपने स्तर के क्रमानुसार तत्तद् प्रकार का प्रतिभात होने लगता है। 'जाकी रही भावना जैसी' उसे वैसे ही अर्थ का प्रतिफलन होता है। तदनन्तर जैसे-जैसे भावना की उन्नीत अवस्था आती-जाती है, उसी तारतम्य से उस व्यक्ति की उन्नति के अनुसार नवीन-नवीन अर्थ (उसी वाक्य का) प्रतिभात होने लगता है। यही महापुरुष की वाणी की अलौकिकता है 'प्रतिक्षणंयन्नवतामुपैति'।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:अनंत की ओर | Anant Ki Aur
Author:Pt. Gopinath Kaviraj
Total pages:420
Language: हिंदी | Hindi
Size:55 ~ MB
Download Status:Available


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