Free Hindi Book Bhooton ke desh mein Iceland In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
प्रेतों से पहली मुलाकात मेरी गाँव में ही हुई होगी। शहर में प्रेत नहीं मिलते। जैसे भेड़-बकरी कम नजर आते हैं, रात को तिलचट्टे की आवाज कम सुनाई देती है, जुगनू नहीं दिखते, वैसे ही प्रेत भी नहीं दिखते। प्रेतों की खासियत है कि उनको शांति पसंद है। जरा भी हलचल हुई, प्रेत बेताल की तरह फुर्र हो जाएँगे। गर आदमियों के बीच हो-हल्ले में ही रहना होता, तो आखिर प्रेत क्यों बनते?
गाँव में तो यूँ ही छुटपन में प्रेत दिख जाते। कभी डर जाता, कभी ध्यान ही न देता। वो पीपल के पेड़ पर दिख गए, तो सड़क छोड़ खेतों में उतर जाता। गर वो खेतों में दिख गए, तो हाथ में मिट्टी का ढेला ले कर तेज कदम चलने लगता। मिट्टी से डरते हैं प्रेत। डरते हैं कि जिस मिट्टी से निकले हैं, उसी में न वापस मिल जाएँ। इसलिए गाहे-बगाहे उड़ते रहते हैं, या पेड़ की शाखा पर जा बैठते हैं। पीपल पर, बबूल पर, इमली पर, जामुन पर, मौलश्री पर, या किसी पुराने बरगद पर। दरअसल गाँव में प्रेत भी सर्वहारा का ही हिस्सा हैं। पार्ट ऑफ़ फैमिली। उनसे कोई खौफ नहीं। कई प्रेत तो अपने परिजनों के अंदर ही होते हैं, जो अजीब सी हरकतें करने लगते हैं। उनसे भय नहीं होता, पर उनकी चिंता होती है। इलाज वगैरा होता है, झाड़-फूंक भी। और प्रेत भी थक-हार कर कहते हैं कि दूसरा शरीर पकड़ लो, यहाँ तो बड़ी दुर्गति है। यह कितना सुंदर स्वरूप होगा प्रेतों का! कभी इस शरीर तो कभी उस शरीर। एक हम हैं कि उसी शरीर में अटके पड़े हैं। कभी तोंद निकल जाती है, कभी खाज-खुजली, तो कभी नाक बहना। प्रेत के जीवन में यह तमाम झंझट हैं ही नहीं।
गाँव के प्रेतों से मुलाकात कुछ खास नहीं रही। वो नेपथ्य में हर जगह ही थे, पर खुल कर मंच पर नहीं आए।
पहली बार जब प्रेतों से औपचारिक भेंट हुई, तभी उनसे बतिया पाया, उन्हें समझ पाया। बंगाल के तारापीठ का श्मशान प्रेतों का एक कॉरपोरेट ऑफ़ीस है। वहाँ देश के गणमान्य प्रेत जुटते हैं, शास्त्रार्थ करते हैं। मैं जब तारापीठ पहुंचा और वहाँ के लंबे-लंबे गुलाबजामुन देखे, तभी समझ गया कि यह स्थल ही विकृत है। श्मशान के मध्य मंदिर बना रखा है, और परिसर में कंकाल बिखरे पड़े हैं। जितने लोग नहीं, उससे अधिक कोलाहल। जितने पेड़ नहीं, उससे अधिक जंगली माहौल। जैसे हजारों 'बोस' के स्पीकर लगाकर कोई भाग गया हो, जिनसे विचित्र आवाजें आ रही हों। इन पर नियंत्रण बस औघड़ बाबाओं का है, जिन पर नियंत्रण किसी का नहीं। पास जाओ, तो पत्थर लेकर खदेड़ दें। दूर से छिटको तो "बच्चा ! इधर सुन!" कहकर बुला लें।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | भूतों के देश में आईसलैंड | Bhooton ke desh mein Iceland |
Author: | Praveen Kumar Jha |
Total pages: | 53 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 1.1 ~ MB |
Download Status: | Available |

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