Free Hindi Book Buddha Charitam In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
संसार परिवर्तनशील है। प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है। सामान्य परिवर्तन प्रकृति ही करती रहती है। देश और कालरूप अधिष्ठान में 'अग्नि, जल एवं चायु'- ये तीनों वस्तु को बदलते रहते हैं। अनि गरमी देती है। जल तर्पण करता है। वायु स्फुरण देती है। इससे वस्तु की उत्पत्ति होती है। फिर अग्नि जलाती है, जल सड़ाता है और वायु शोषण करती है। इससे वस्तु का विनाश होता है। उत्पत्ति से विनाश तक की क्रियाओं में जो समय लगता है, वही स्थिति है। इस प्रकार उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय का चक्र चल रहा है। यह चक्र कब से चला है? कब तक चलेगा? यह कहा नहीं जा सकता। यह अनादि है। अनन्त है।
इस सामान्य परिवर्तन की अपेक्षा एक विशेष परिवर्तन भी होता है। वह है- 'आचार-विचार का परिवर्तन'। यह परिवर्तन प्रायः मनुष्यों में ही होता है। मनुष्य अन्य प्राणियों की अपेक्षा सर्वाधिक चेतन है। इसमें विचार की धारा प्रवाहित होती रहती है। संसार के सम्बन्ध में यह विचार करता है। विचार अनेक प्रकार के होते हैं। संसार क्या है? कब से बना है ? किस-लिये बना है ? इसका रचयिता कोई है अथवा यह अपने आप बनता है ? इत्यादि अनेक प्रश्न उठते हैं। इनका समाधान सामान्य मनुष्य नहीं कर सकता। दुरुह विषय होने के कारण बुद्धि थक जाती है। विचार रुक जाता है। अगत्या मनुष्य भोगाभिमुख हो जाता है। इन्द्रियों की स्वाभाविक प्रवृत्ति बहिर्मुखी है। उच्च विचारकों की प्रवृत्ति भी भोगाभिमुख हो जाती है। तब भोग को समर्थन मिल जाता है। आचार भी लुप्त हो जाते हैं। संसार भोग-प्रधान बन जाता है।
भोग में अनेक दोष हैं। अधिक से अधिक मिलने पर भी अपूर्ण ही बना रहता है। इसकी सीमा नहीं है। रोग, शोक आदि तो उसके तात्कालिक फल हैं। सबसे बड़ा दोष तो यह है कि दुर्बलों को सताये बिना भोग प्राप्त नहीं होता। जब संसार भोग-प्रधान होता है तब सबल मनुष्य दुर्बलों को सता कर अपना सुख सम्पादन करने लगते हैं। हिंसा, मिथ्या, छल, कपट और पाखण्ड का साम्राज्य हो जाता है। उस समय दुर्बलों का जीवन भय एवं आतङ्क से नरक तुल्य हो जाता है। सबल भी सुखी नहीं रह पाते। उनमें काम-क्रोध की अधिकता से हिंसा की प्रधानता हो जाती है। क्रूरता, तृष्णा तथा अभिमान बढ़ जाते हैं। सहस्रों आशा-पाश में बंधकर उन्मार्गी हो जाते हैं। उस समय प्राणी की तो बात छोड़ेंः समष्टि प्राण ही संकटापन्न हो जाता है। चारों ओर हाहाकार मच जाता है। त्राण पाने के लिये समष्टि अन्तःकरण दीन पुकार करने लगता है। तब महान् क्रान्तिकारी परिवर्तन की आवश्यकता होती है। उसमें प्रकृति का बश नहीं चलता। ऐसे अवसर पर ही एक दिव्य पुरुष का प्रादुर्भाव होता है। वे अपने अलौकिक प्रभाव से मनुष्यों के आचार-विचार में आमूल परिवर्तन करते हैं तब संसार सुख की साँस लेता है।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | बुद्धचरितम् | Buddha Charitam |
Author: | Ashva Ghosa |
Total pages: | 252 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 53 ~ MB |
Download Status: | Available |

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