दशरथनंदन - दशानन गाथा | DASHRATH NANDAN-DASHANAN GATHA HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

राक्षसकुल की मुक्ति की गाथा

दशरथनदंन के रूप में श्रीहरि के अवतरण का मुख्य उद्देश्य अपने भक्तों को संतुष्ट करना और राक्षसी प्रवृत्तियों का संहार करना था और उन्होंने यह उद्देश्य संपूर्णतया संपन्न किया। दशरथनंदन के रूप में उनके अवतरण को स्पष्ट करते हुए महर्षि वशिष्ठ महाराजा दशरथ से कहते हैं-

"हे धन्यभागी महाराज दशरथ । तुम्हारे चारों पुत्र सभी वेदों के तत्त्व रूप हैं। ये ऋषियों का धन, भक्तों का सर्वस्व और शिव के प्राण हैं, जिन्होंने तुम्हारे प्रेम-बंधन में बाललीला करने में सुख माना है। राम ही साक्षात् श्रीहरि का रूप हैं। पूर्व जन्म में तुम ऋषि कश्यप व महारानी कौशल्या जगत्माता अदिति थीं। एक जन्म में तुम ही मनु और महारानी शतरूपा थीं, ऐसे ही कई जन्मों की घोर तपस्या से प्रसन्न करके तुमने श्रीहरि से उनके समान पुत्र पाने की कामना की थी। अब उनके जैसा तो दूसरा कौन है? अतः करुणानिधान ने स्वयं ही पुत्र बनकर आपकी कामना पूर्ण की है।"

दशरथनंदन के न्याय, धर्म और पराक्रम की परख वानरराज बालि के साथ उनके संवाद से भली-भांति हो जाती है। जब दशरथनंदन बालि को अपने तीक्ष्ण बाण से मर्माहत करते हैं तो बालि के साथ उनका संवाद उल्लेखनीय है-

"...हे दशरथनंदन! मुझे एक अवसर तो दिया होता। मैं दशानन को लंका से घसीटकर तुम्हारे समक्ष डाल देता।"

"बालि, जो अधर्म के मार्ग पर चलते हों, उनकी मित्रता भी अनिष्टकारी होती है। तूने कब धर्म व नीति का पालन किया? क्या भाई की पत्नी को बलात् अपनी अंकशायिनी बना लेना धर्म है? क्या भाई के अधिकारों का हनन करना नीति है? हे अभिमानी बालि, तुझे मैंने नहीं मारा, तुझे 'मैं' ने मारा है। बल का अहंकार ही तेरे पतन का कारण है। जिसने कभी न्याय और नीति का पालन न किया हो, उसे कभी इनका उदाहरण न देना चाहिए। तुमने वही फल पाया है, जैसे बीज रोपे थे। रावण जैसे दुष्ट को दंडित करने के लिए मैं किसी दूसरे दुष्ट का आश्रय लेकर अपने कुल.........

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:दशरथनंदन - दशानन गाथा | Dashrath Nandan-Dashanan Gatha
Author:M. I. Rajasve
Total pages:392
Language: हिंदी | Hindi
Size:50 ~ MB
Download Status:Available


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