ध्यान योग | DHYAN YOGA BY SWAMI SIVANAND HINDI BOOK PDF DOWNLOAD

Dhyan Yoga In Pdf Download

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

तैल-धारा के सतत प्रवाह के सदृश किसी एक ही विचार के प्रवाह को बनाये रखना ही ध्यान है। ध्यान दो प्रकार का होता है-मूर्त और अमूर्त। किसी चित्र या मूर्त पदार्थ पर ध्यान करना मूर्त ध्यान है। किसी अमूर्त विचार या धैर्य-जैसे किसी गुण पर ध्यान करना अमूर्त ध्यान है। प्रारम्भ में साधक को मूर्त ध्यान का अभ्यास करना चाहिए। कुछ साधकों के लिए मूर्त ध्यान की अपेक्षा अमूर्त ध्यान करना अधिक सरल होता है।

साधकों को प्रत्याहार और धारणा में सुस्थित होने के बाद ही ध्यान का प्रारम्भ करना चाहिए। यदि इन्द्रियाँ उछल-कूद मचा रही हों, मन किसी बिन्दु पर टिक नहीं पा रहा हो, तो दीर्घ काल तक अभ्यास करने पर भी सफलतापूर्वक ध्यान नहीं किया जा सकता। साधना-पथ पर क्रम से धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहिए। ध्येय पर मन को टिकाने का प्रयास करते हुए उसे (मन को) बार-बार भटकने से रोकना चाहिए। भटकने की इसकी प्रकृति पर नियन्त्रण प्राप्त करना आवश्यक है। मन 'अनावश्यक कामनाओं को हटा देना चाहिए। कामना रहित व्यक्ति ही शान्त हो कर ध्यान का अभ्यास कर सकता है। ध्यान के अभ्यास की दो महत्त्वपूर्ण पूर्वापेक्षाएँ हैं-सात्त्विक हलका आहार तथा ब्रह्मचर्य पालन ।

चेतना दो प्रकार की होती है- संकेन्द्रित चेतना तथा औपान्तिक (marginal) चेतना । जब आप त्रिकुटी पर ध्यान करते हैं, उस समय संकेन्द्रित चेतना क्रियाशील रहती है। ध्यान करते समय शरीर पर बैठी हुई मक्खी को जब आप हाथ उठा कर भगाते हैं, तब उस समय मक्खी के प्रति आपकी सजगता औपान्तिक चेतना है। क्षण मात्र के लिए भी अग्नि के सम्पर्क में आया हुआ बीज कभी अंकुरित नहीं हो सकता, भले ही उसे उर्वरा भूमि में बो दिया जाये। इसी प्रकार कुछ देर के लिए ध्यान में रत जो मन अस्थिर होने के कारण ऐन्द्रिय पदार्थों की तरफ दौडने लगता है, उससे योग साधना में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती।

प्रारम्भिक अभ्यासियों को प्रतिदिन वेदान्त के कुछ महत्त्वपूर्ण कथनों का स्मरण करना चाहिए। प्रवाहित होने वाली विचार-तरंग को प्रोत्साहित करें। तब मन चोर की तरह लुकता छिपता फिरेगा और अन्त में काबू में आ जायेगा।

योगवासिष्ठ के अनुसार, नये अभ्यासी के लिए उचित होगा कि वह अपने मन के आधे भाग को सुख-भोग के पदार्थों से, एक चौथाई भाग को दर्शनशास्त्र तथा शेष एव चौथाई भाग को गुरु-भक्ति से परिपूर्ण कर ले। जब कुछ अभ्यास हो जाये तब आधे भाग को गुरु भक्ति से, एक चौथाई भाग को सुख भोग के पदार्थों से तथा शेष भाग क दर्शनशास्त्र के अर्थ-बोध से भर लेना चाहिए। साधना में निपुणता प्राप्त करने के पश्चात उसे प्रतिदिन अपने मन के आधे भाग को दर्शनशास्त्र के ज्ञान तथा परम त्याग से और शेष आधे भाग को ध्यान तथा गुरु-भक्ति से परिपूरित कर लेना चाहिए।" अन्ततः आप प्रतिक्षण ध्यान में रहने की स्थिति में पहुँच जायेंगे। सच्चिदानन्द ब्रह्म का सतत ध्यान करें तथा जीते-जी परम निष्कल्मष पद प्राप्त कर लें।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:ध्यान योग | Dhyan Yoga
Author:Swami Sivanand
Total pages:182
Language: हिंदी | Hindi
Size:2.3 ~ MB
Download Status:Available


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