Free Hindi Book Krishna Ek Rahasya In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
"तुम भी नाची हो कन्हैया के साथ?" शारदा के स्वर में उत्साह की लहर उठी और उसका अभिभूत मन पूछ बैठा। "नाची? अरे, हमने उसे ऐसा नचाया कि पूछो मत!" मीनू बोली, "हम उसकी मुरली छुपा लिया करती थीं। वह हमसे पूछता कि क्या मेरी मुरली तुमने ली है? हम उसे सताने के लिए कह देती थीं कि नहीं, हमने नहीं ली और वह मान जाता था। फिर हम उसे किसी का भी नाम लेकर कहतीं कि उसके पास तुम्हारी मुरली है। इस प्रकार उसे दौड़ाकर सताती रहती थीं। फिर थककर वह कदंब के पड़ के नीचे बैठ जाता और कहता कि मैं सो रहा हूँ।
यदि मेरे जागने से पहले मुरली तुम लोगों ने मुझे नहीं दी तो फिर मैं तुम्हें कभी मुरली नहीं सुनाऊँगा। हम उसके लेटते ही चुपके से उसके हृदय पर पोंगरी रख दिया करती थीं। उसके बाद तो बाजी रसिया के हाथ होती थी। ऐसा रस बहाता था कि जी चाहता था कि अभी प्राण त्यागकर मुक्ति के इस संगीत में समा जाऊँ।" उसने रुककर कुएँ पर बैठी गाँव की स्त्रियों की ओर देखा, "जिस दिन अक्रूरजी कान्हा और बलराम को कंस के बुलावे पर मथुरा लेकर गए थे, उसी दिन मेरा व्याह था।" मीनू के अधर काँपने लगे। उसकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह चली, "क्या बताऊँ, सखियो! ऐसा काला दिन हमने कभी नहीं देखा। कई दिन तक गोकुल में चूल्हा नहीं जला। गौओं ने अपने बछड़ों को दूध पिलाना छोड़ दिया। बैल तो चारे से मुँह ही मोड़ चुके थे। खलिहानों में अन्न पड़ा था, पर कोई पक्षी उसे चुग नहीं रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे गोकुल के प्राण-पखेरू ही उड़ गए हों। ऐसा कोई घर नहीं था, जिसमें दीपक जला हो। मंदिरों में संध्या-वंदन, आरती इत्यादि न होने के कारण वे नीरव और निर्जन पड़े थे। घर के बड़े-बूढ़े बताते थे कि ऐसा काला दिन आज तक उन्होंने न देखा और न सुना। पवनदेव भी जैसे दुःखी होकर किसी गुफा में जा छिपे थे। चंद्रमा धूमिल था और तारों की आभा को रेणु से भरे मेघों ने मलिन कर दिया था।"
"फिर कब लौटकर आए श्यामसुंदर?" रजनी ने पूछा।
"व्याह के बाद पहले सावन में जब मेरा भाई लेने आया तो उसने बताया कि कन्हैया अभी तक लौटकर नहीं आया।" मीनू का गला भर आया, "आज बीस बरस से ऊपर हो गए, पर वह निर्मोही एक बार गया तो फिर उसने मुड़कर उन गलियों और चौराहों को एक बार भी नहीं देखा जहाँ उसने अपनी इतनी लीलाएँ कीं। मैंने सुना कि उसने गोपियों के दुःख को बढ़ाने के लिए ऊधो महाराज को भेज दिया। उन दिनों मैं पीहर गई हुई थी। मैंने सब देखा। बड़ा ज्ञान बघारा उसने; पर गोपियों ने भी उसे प्रेम की झाडू से ऐसे पीटा कि उसका सारा ज्ञान ही बुहार दिया और कैंगला करके मथुरा का रास्ता दिखाया। लुटा-पिटा ऊधो अपने कृष्ण महाराज से जाकर खूब लड़ा और बोला कि 'अब पता लगा कि महाराज स्वयं क्यों नहीं गए। पिटवाने के लिए अपने सेवक को भेज दिया।" मीनू आवेश में आ गई, "पंडित कहते हैं कि ज्ञान को कोई चुरा नहीं सकता। हमने तो ज्ञानियों के ज्ञानी ऊधों के ज्ञान को जमना मैया के घाट पर ऐसा धोया, ऐसा धोया कि अब वह ज्ञान से कोसों दूर रहेगा। उसकी सारी चतुराई ही हर ली।" "तुम सबने मिलकर श्याम को रोक क्यों नहीं लिया? क्यों जाने दिया कंस के पास?" गंगा ने पूछा।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | कृष्ण एक रहस्य | Krishna Ek Rahasya |
Author: | Isan Mahesh |
Total pages: | 147 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 2 ~ MB |
Download Status: | Available |

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