Free Hindi Book Mathura Ish In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
कृष्ण जन्म लेते ही जीवित रहने का संघर्ष। जब मातायें अपने नवजात शिशुओं को कई महीनों तक घर से बाहर नहीं निकलने देतीं, वहीं पैदा होते ही कृष्ण भादों की रात, मूसलाधार बारिश में पिता के साथ निकल पड़ते हैं गोकुल की ओर।
जहाँ माता पिता सन्तान की परवरिश 'ये मत करो,' 'वहाँ नहीं जाना,' जैसी निषेधात्मक बातों के साथ करते हैं। वहीं नन्द ने कृष्ण को उन्मुक्त वातावरण दिया। यह जानते हुए भी कि मथुराराज से बालक के जीवन पर संकट आ सकता है, नन्द ने कृष्ण को रोका नहीं, स्वतन्त्र रखा। सामने आये संकट से निपटने, अपनी समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने, अपनी जिज्ञासाओं का उत्तर खोजने, अपनी अन्वेषक प्रवृत्ति को विकसित करने में कृष्ण को स्वतन्त्रता मिली और फलतः कृष्ण वह बने, जो उन्हें बनना चाहिए था। निर्भय, आत्मविश्वास से भरे, निर्बल असहाय की सहायता करने वाले तथा तर्क की कसौटी पर अपने ज्ञान को सही सिद्ध करने वाले। मनुष्य के लिये कुछ भी असंभव नहीं, वह चाहे तो छलाँग लगा आकाश छू सकता है। आवश्यकता है कि माता-पिता अपनी सन्तान का नैसर्गिक विकास होने दें। कृष्ण की असीमित क्षमताओं ने यह सिद्ध किया।
धर्म की दुर्दशा ने कृष्ण को आहत किया। ब्राह्मण-पुरोहितों द्वारा अपनाये गये समय साध्य, श्रम साध्य और अति खर्चीले कर्मकांडों ने तत्समय जन मानस को लाचार बना दिया। धार्मिक क्रियाओं को करने पर सब कुछ लुट जाने की चिंता, नहीं करने पर अनिष्ट का भय। ऐसे में कृष्ण ने सरल उपासना विधि समाज को दी। उपनिषदों के अध्ययन ने कृष्ण को धर्म क्षेत्र में सुधार का मार्ग दिखाया और उन्होंने ज्ञान, कर्म और भक्ति का मिश्रित स्वरूप दिया।
सिकन्दर के आने के सैकड़ों वर्षों पूर्व यवनों ने भारत के पश्चिम क्षेत्र में अपनी घुसपैठ की, अपनी बस्तियां बसायीं, व्यापार फैलाया और भारत के अंदर तक अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयास किया। काल यवन को मार कर कृष्ण ने विदेशी प्रभाव को बढ़ने से रोका और अनेक यवनों को आर्यों में सम्मिलित कराया। इस घटना के बाद शताब्दियों तक विदेशी भारत में अपना प्रभाव नहीं बना सके।
वृष्णि, भोज, अंधक, कुक्कुर, शूर आदि ने मिलकर यादवों का संगठन बनाया और कृष्ण उसके संघ-मुख्य बने। कृष्ण ने समय की माँग को समझ राष्ट्र को धार्मिक एवं राजनीतिक नेतृत्व दिया और यादवों के संघ-मुख्य के दायित्वों से ऊपर उठते हुए पूरे देश के, सभी जातियों के मुखिया बन गये।
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | मथुरा ईश | Mathura Ish |
Author: | Sanjay Tripathi |
Total pages: | 51 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 0.5 ~ MB |
Download Status: | Available |

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