स्वसंवेदन | SWA SAMVEDAN HINDI BOOK PDF FREE DOWNLOAD

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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:

साधना और तत्त्वविषयक जो नाना जिज्ञासाएँ अपने ही अन्तर में समय-समय जैगती रहती थीं, 'स्वसंवेदन' उन्हीं पर अवलम्बित आचार्यप्रवर म० म० पं० गोपीनाथ कविराज के प्रज्ञालोक की सहज उपलब्धियाँ हैं। गूढ तत्त्व की ये अमूल्य निधियाँ उनकी नितान्त निजी सम्पदा थीं। अपने आध्यात्मिक मार्ग की सुगमता के लिए वह इनका व्यवहार करते थे, इसलिए अपने सुदीर्घ जीवन-काल में इस सम्पदा को उन्होंने बड़े जतन से सँजोकर रखा था। जीवन के अन्तिम दिनों में लोगों के एकान्त आग्रह और अनुरोध से जिज्ञासुओं के उपयोग के लिए उन्होंने इनके प्रकाशन की अनुमति दी।

सन् १९१८ ई० में दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् गूढ ज्ञान की ये किरणें उनके चित्त में बोधरूप में उदित होती थीं। आचार्यप्रवर के भास्वर चित्ताकाश में जब जिस रूप में इस दिव्य आलोक का विकीरण हुआ; उन्होंने उसी समय ठीक उसी रूप में हू-ब-हू. उन्हें लिपिबद्ध करके रख लिया। क्योंकि, यह स्वतः स्फूर्त ज्ञान अन्तर की वस्तु है, बाहर से सँजोई गई वस्तु नहीं। अतएव, बोधरूप ऐसी वाणियाँ क्षणजन्मा होती हैं। कभी किसी गूढ विषय पर संशय-भरी चिन्ता के तीव्र हो उठने से वे अकस्मात् ही स्फुरित हो उठती हैं। और, यदि उसी समय उन्हें स्मृति-कोष में संरक्षित करने की चेष्टा न की जाय, तो भाफ की तरह विलीन हो जाती हैं, फिर से उन्हें पकड़ सकने का कोई उपाय नहीं रह जाता ।

इस कोटि की रचनाओं को प्राचीन ऋषियों ने विवेक-वाणी की आख्या दी है। ये रचनाएँ शुद्ध विकल्पात्मक हैं। ये विवेकज वाणियाँ कल्पना-राज्य की वस्तु हैं, किन्तु अशुद्ध नहीं; शुद्ध कल्पना, जिसे शास्त्र में शुद्ध विकल्प कहा गया है।। शुद्ध विकल्प निर्विकल्पक पवं का पथ-प्रदर्शक है। भावराज्य में इस पथ के अनुसरणकारी साधकों के लिए ये उपयोगी हैं। लेकिन, ऐसा नहीं कहा जा सकता कि विवेकोत्तर सब ज्ञान ही सबके लिए आवश्यक है। जिनमें विशेष किसी विषय के लिए संशय नहीं उत्पन्न हुआ, उस विषय के समाधान-स्वरूप ज्ञान की आवश्यकता उसे तत्काल नहीं भी हो सकती है। फिर भी, साधकों के लिए ये उपयोगी ही होंगी। यद्यपि यह ज्ञान गूढ है और इसका बहुत-सा अंश दुबर्बोध्य भी लग सकता है, तथापि गहरे पानी पैठनेवाले जिज्ञासुओं को दुर्लभ मोती के लिए निराश नहीं होना पड़ेगा ।

Details of Book :-

Particulars

Details (Size, Writer, Dialect, Pages)

Name of Book:स्वसंवेदन | Swa Samvedan
Author:Gopinath Kabiraj
Total pages:391
Language: हिंदी | Hindi
Size:79 ~ MB
Download Status:Available


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