Free Hindi Book Kamaratna Tantra In Pdf Download
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पुस्तक का संक्षिप्त विवरण:
भारतवर्षकी विद्याओंमें तन्त्र शास्त्रभी एक अनुपम सामग्री है इस शास्त्रके मुख्य आचार्य भूतभावन देवादिदेव महादेवजी है। इन्होंने प्राणियोंका अल्प सामर्थ्य देख थोडे परिश्रमसे हो भक्तोंकी कार्यसिद्धिके निमित्त तन्त्र शास्त्रका उपदेश किया है, तन्त्र में मन्त्र यन्त्र और औषधी तीनों का प्रयोग होने से शीघ्र ही कार्यकी सिद्धि होती है, इसी कारण तन्त्र शास्त्र की महिमा सर्वत्र बडे प्रभाव के साथ सुनी जाती है, जब काल क्रमसे शास्त्र लुप्त हुआ तब बडे २ सिद्ध योगी महात्माओं ने अपने तपके द्वारा मन्त्र और यन्त्रोंको देखकर उनमें दैवी शक्ति स्थापन कर चराचरके उपकारको इच्छा की, तंत्रों में आदि आचार्य होने और सब विषय महेश्वरी से कथन करने के कारण शिवजी का सर्वत्र संवाद पाया जाता है,। सिद्धि योगियोंने तपसे उस वार्ताको जान अपने ग्रंथों में भी प्रायः बंसाही लिखा है।
देश, काल, पात्र, राशि, मुहूर्त, योग मिला-कर मंत्र साधने से साधक को शीघ्र सिद्धि होती है। तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र पूर्वक औषधी का प्रयोग करनेसे रोगीको बहुत शीघ्र आरोग्यता होती है तथा वद् कर्मसे कुशलता होती है, इन्ही सब योगों से यह विद्या एक समय संपूर्ण विश्वमें व्याप्त थी, अथर्ववेद में इसका मूल है, बडी २ गूढ विद्या मन्त्रशास्त्रमें प्रत्यक्ष फल देनेवाली विद्यमान है, जिनके अनुष्ठान से साधक मनोरथ बहुत शीघ्र प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु मन्त्रानुष्ठानमें गुरुकी बडो आवश्यकता है। जो कृतज्ञ, कृतकार्य, अनुभवी, जितेन्द्रिय गुरुके मुखसे विधि ग्रहण कर उनकी आज्ञासे शुभ दिन में अनुष्ठान प्रारंभ करते हैं वे सिद्धि लाभ करते हैं और जो निरक्षर भट्टाचार्य विना गुरु के मन्त्र सिद्धि करना चाहते हैं उनके मनोरथकी प्राप्ति नहीं होती। इस कारण गुरुके द्वाराही तन्त्र विधानमें प्रवृत्त होना चाहिये और कठिन प्रयोगों में तो कृतकार्य गुरुको बढी ही आवश्यकता है। कालक्रमसे इस समय फिर तन्त्रशास्त्रका प्रचार घट चला है, कोई २ देश तो ऐसे हो गये कि, तन्त्र क्या पदार्थ है इसको भी नहीं जानते और कार्य सिद्धि के निमित्त इधर उधर भटकते फिरते तथा संकडों रुपये व्यय करके भी पूर्णरूपसे कृतकार्य नहीं होते हैं।
तन्त्र द्वारा स्वल्प व्यय और स्वल्प परिधमसे कृत-कार्यता हो। यही विचारकर परोपकार दृष्टिसे वैश्यवंशदिवाकर जगद्विख्यात सेठजी श्रीयुत गंगाविष्णु श्रीकृष्णदासजी महोदयने सत्प्राचीन तन्त्रों के प्रचार करनेकी इच्छासे कितने एक तन्त्र भाषाटीकासहित प्रकाशित किये और करते जाते हैं, जिनमें ६४ तन्त्रों का सार-महानिर्वाण तन्त्र बलदेवप्रसाद मिश्रकृत भाषाटीका सहित, तथा रावणकृत बालतन्त्रादि मुख्य है प्रकाशित हुए। ऐसे प्रन्थोंमें कामरत्न ग्रन्य बहुत उत्कृष्ट और सर्व साधारणको लाभ-दायक है। इसकी एक लिखी हुई पोथी सेठजीने मेरे पास भेजकर भाषाटीका करने को कहा, यद्यपि वह लिखी पुस्तक विशेषरूपसे अशुद्ध थी परन्तु दो और पुस्तक मिल जाने के कारण उसके शुद्ध करनेमें विशेष कठिनाई न पडी और भाषाटीकासहित तयार कर पुस्तक प्रेषण को ।
इस ग्रन्थमें कितने विषय हैं इसके कहनेकी तो कोई आवश्यकता नहीं । कारण कि, इसकी सूचीमें वह विषय विस्तारसे लिखे हैं परन्तु यह कहने में अत्युक्ति नहीं है कि, इस समयतक जिसने तन्त्र प्रकाशित हुए हैं उनसे यह उत्कृष्ट है और प्रायः इसमें सब विषय सन्निविष्ट है। इसकी उत्तमताका एक और भी प्रमाण यह है कि, प्रकाशित होतेही शीघ्रतासे यह पन्थ निकल गया और किन्ही असहनशील ईर्षापरवश लोलुप जनोंको यहाँतक क्षोभ हुआ कि, बंबई सरकारमें, पुस्तक को अश्लील कहकर अभियोग उपस्थित कर दिया, परन्तु 'यतो धर्मस्ततो जयः जहाँ धर्म वहाँ जय, सत्यकी जय होती है अनुतकी नहीं। अन्तमें पुस्तक उपयोगी और प्रकाशनीय सिद्ध होकर जीपंत्रालयाध्यक्षकी जय हुई।
अबकी आवृत्तिमें प्राचीन लिखित कामरत्नकी पुस्तकोंसे मिलाकर इसको विशेष शुद्ध करदिया है, तथा जहाँ कहीं कोई विशेषता इनमें देली वह..........
Details of Book :-
Particulars | Details (Size, Writer, Dialect, Pages) |
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Name of Book: | कामरत्न तंत्र | Kamaratna Tantra |
Author: | Jwala Prasad Mishra |
Total pages: | 384 |
Language: | हिंदी | Hindi |
Size: | 43 ~ MB |
Download Status: | Available |

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